स्वीजी का किंकित मांग वक्र|Sweezy’s Kinked Demand Curve

अल्पाधिकार में कीमत निर्धारण

(price determination under oligopoly)

  1. स्वीजी का गैर कपट संधि किंकित मांग वक्र अल्पाधिकार मॉडल /Sweezy’s Kinked Demand Curve
  2. कपट संधिपूर्ण अल्पाधिकार मॉडल

 

स्वीजी का किंकित मांग वक्र/त्वरायुक्त मांग (स्थिर कीमत) मॉडल

(Sweezy’s Kinked Demand Curve)

यदि कोई अल्पाधिकारी फर्म अपनी वस्तु की कीमत घटाकर बिक्री बढ़ाना चाहती है तो उसके प्रतिद्वंदी अपने ग्राहकों को खोने के भय से अपने कीमत के बराबर की कटौती द्वारा प्रतिक्रिया करेंगे इस तरह कीमत कम करने वाली फर्म अपनी बिक्री नहीं बड़ा पाएगी इसलिए मांग वक्र का यह भाग कम लोचदार होता है।

दूसरी ओर यदि अल्पाधिकारी फर्म अपनी कीमत बढ़ाती है तो उसके प्रतिद्वंदी उसका अनुसरण करते हुए अपनी कीमतों में परिवर्तन नहीं करेंगे इस तरह उसकी वस्तु की मांगी गई मात्रा में काफी गिरावट आ जाएगी अतः मांग वक्र का यह हिस्सा सापेक्षतया लोचदार होता है। इन दोनों ही स्थितियों में अल्पाधिकारी फर्म के मांग वक्र में वर्तमान कीमत पर किंक या त्वरा होता है जो कीमत स्थिरता को प्रदर्शित करता है।

Sweezy’s Kinked Demand Curve-कीमत स्थिरता से तात्पर्य  उन परिस्थितियों से है जिनमें कीमत समय की एक अवधि में एक ही स्तर पर बनी रहती है भले ही मांग एवं पूर्ति की दशा में परिवर्तन हो गया हो ।

 

मान्यताएं

कीमत स्थिरता का Kinked Demand Curve सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-

  1.  अल्पाधिकारी उद्योग में फर्म की संख्या सीमित है।
  2.  एक फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु अन्य फर्मों की वस्तु के निकट स्थानापन्न है।
  3. वस्तु गुणवत्ता युक्त है।
  4. वस्तु विभेदीकरण नहीं है।
  5. विज्ञापन व्यय नहीं है।
  6.  प्रत्येक विक्रेता का व्यवहार अपने प्रतिद्वन्द्वियों के व्यवहार से प्रभावित होता है।
  7.  अल्पाधिकार उद्योग में वस्तु की एक प्रचलित कीमत होती है जिस पर सभी विक्रेता संतुष्ट होते हैं।
  8.  यदि कोई विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत घटाकर अपनी बिक्री बढ़ाना चाहता है तो अन्य विक्रेता उसका अनुसरण करेंगे। और वे अपनी वस्तुओं की कीमतें घटा कर उसके प्रयास को नाकाम बना देंगे।
  9.  यदि कोई विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत बढ़ा देता है तो दूसरे उसका अनुसरण नहीं करेंगे तथा कीमत बढ़ाने वाले विक्रेता के ग्राहकों की आवश्यकताओं को पूरा करेंगे।
  10.  सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम वक्र के बिंदुकित भाग के बीच से गुजरता है अतः सीमांत लागत वक्र में परिवर्तन उत्पादन एवं लागत को प्रभावित नहीं करते।

 

मॉडल (The Model)

उपरोक्त मान्यताओं के दिए होने पर अल्पाधिकार बाजार में कीमत उत्पादन संबंध को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

चित्र में KPD अल्पाधिकारी का किंकित (या त्वरायुक्त) मांग (या औसत आगम) वक्र है बिंदु p पर त्वरा या मोड़ है।

यदि बिंदु P पर मोड़ न होता तो मांग वक्र का सामान्य स्वरूप KPB होता।

बिंदु P पर त्वरा या मोड़ का अर्थ है कि यदि फर्म बिंदु P से अधिक कीमत रखती है तो उसके प्रतिद्वंद्वियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा अर्थात अन्य फर्में अपनी कीमत नहीं बढ़ाएंगी तथा कीमत अधिक होने के कारण इस फर्म के बहुत से ग्राहक प्रतिद्वंद्वियों के पास चले जाएंगे इसका कारण यह है कि किंचित मांग वक्र का KP भाग मूल्य सापेक्ष है अर्थात मूल्य बढ़ाने से मांग कम हो जाएगी इससे उसकी बिक्री तो घटेगी साथ ही उसका आगम और लाभ भी कम हो जाएगा अतः कीमत बढ़ाने का निर्णय लेने से पहले फर्म को बहुत सोच विचार करना होगा।

इसके विपरीत यदि फर्म अपनी कीमत बिंदु P से नीचे निर्धारित करती है तो उद्योग की अन्य प्रतिद्वंदी फर्में भी तुरंत अपनी कीमत घटा देंगी यद्यपि कीमत घटाने से उसकी बिक्री कुछ बढ़ सकती है फिर भी उसका लाभ पहले से कम हो जाएगा क्योंकि P से नीचे किंकित मांग वक्र का PD भाग कम लोचात्मक है इस प्रकार कीमत बढ़ाने तथा घटाने दोनों स्थितियों में विक्रेता को हानि होती है फलस्वरुप प्रचलित PM कीमत ही बाजार में स्थिर बनी रहेगी।

KPD मांग वक्र (औसत आगम वक्र) के अनुरूप KALN फर्म की सीमांत आगम वक्र है जब मांग वक्र किंकित या त्वरायुक्त होता है तब सीमांत आगम वक्र भी विच्छिन्न हो जाता है चित्र में MR वक्र A तथा L के  बीच विच्छिन्नित है A तथा L के मध्य वह भी विच्छिन्नता मोड़ के ऊपर तथा नीचे मांग वक्र की मूल सापेक्षता पर निर्भर करता है।

मोड़ के ऊपर (अर्थात K से P तक) मांग वक्र जितना अधिक मूल्य सापेक्ष होगा तथा मोड़ के नीचे (P से D) तक जितना ही अधिक मूल्य निरपेक्ष होगा A तथा L के मध्य अंतर उतना अधिक होगा जब कोड KPD एक समकोण हो जाता है। तो A, L अंतर अधिकतम चौड़ा हो जाता है। सीमांत आगम वक्र की विच्छिन्नता का अर्थ क्या है कि PM  प्रचलित कीमत से ऊपर तथा नीचे की औसत आगमों तथा उसकी संगत सीमांत आगमों में अंतर है।

अभी हमने कीमत स्थिरता का विश्लेषण एक दिए हुए लागत वक्र तथा किंकित या त्वरायुक्त मांग वक्र के आधार पर किया है। अब हम यह देखने का प्रयास करेंगे कि उत्पादन लागत तथा मांग में परिवर्तन होने पर भी क्या कीमत स्थिरता बनी रहेगी।

 

 लागतो में परिवर्तन तथा कीमत स्थिरता

अल्पाधिकार में Sweezy’s Kinked Demand Curve विश्लेषण के अंतर्गत एक निश्चित सीमा में लागत परिवर्तन वर्तमान कीमत को प्रभावित नहीं करते अर्थात लागत में परिवर्तन होने पर भी कीमत लगभग स्थिर बनी रहती है।

चित्र द्वारा स्पष्टीकरण-

इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया  गया है। मान लीजिए उत्पादन की लागत कम हो जाती है जिससे नया सीमांत लागत वक्र दाहिनी तरफ नीचे खिसक कर MC1 हो जाता है जो सीमांत आगम वक्र के विच्छिन्न भाग के निकट से ही गुजरता है।

इसलिए उत्पादन मात्रा OM तथा कीमत PM ही निर्धारित होगी। यह बात ध्यान देने योग्य है कि कीमत चाहे जितनी कम हो जाए नया MC वक्र MR वक्र को हमेशा विच्छिन्न भाग में ही काटेगा क्योंकि ज्यों-ज्यों कीमतें गिरती हैं अंतर AL अधिक चौड़ा होता जाता है। इसके विपरीत लागतो के बढ़ाने अर्थात सीमांत लागत वक्र MC2 होने पर भी PM स्थिर कीमत ही प्रचलित रहेगी।

 

लागतो में परिवर्तन के फलस्वरुप जब कोई भी नया सीमांत लागत वक्र सीमांत आगम वक्र को विच्छिन्न भाग के भीतर अर्थात A से L के बीच कहीं भी काटेगा, तब तक फर्में कीमत में परिवर्तन नहीं करेंगी परंतु जब लागतो में बहुत अधिक वृद्धि होने पर लागत वक्र सीमांत आगम वक्र को उसके पीछे भाग के ऊपर काटे जैसा कि चित्र में MC2 वक्र की स्थिति है तो कीमत तथा उत्पादन मात्रा में परिवर्तन किया जा सकता है।

इस स्थिति में नई कीमत बढ़कर P1M1 तथा उत्पादन मात्रा घटकर OM2 हो जाएगी परंतु अल्पाधिकारी फर्म अपनी वस्तु की कीमत तभी बढ़ाएगी जब उसे यह विश्वास हो जाएगा कि अन्य फर्में भी लागत वृद्धि के फल स्वरुप कीमत बढ़ा देंगी।

 

मांग परिवर्तन तथा कीमत स्थिरता

अल्पाधिकार के अंतर्गत मांग में परिवर्तन होने पर भी कीमत लगभग स्थिर बनी रह सकती है यदि मांग में वृद्धि हो जाए तो कीमत बढ़ सकती है परंतु जब तक सीमांत लागत वक्र नये सीमांत आगम वक्र को विच्छिन्न भाग के भीतर काटता रहेगा कीमत तथा उत्पादन मात्रा में परिवर्तन नहीं होगा।

यदि MC वक्र नए MR वक्र को उसके विच्छिन्न भाग से ऊपर काटे तो नई कीमत पुरानी कीमत से अधिक होगी परंतु कोई भी फर्म कीमत बढ़ाने के लिए तभी तैयार होगी जब यह उम्मीद होगी अन्य फर्में भी ऐसा ही करेंगी अन्यथा व कीमत बढ़ाकर अपने ग्राहक को खोना नहीं चाहेगी। ऐसी स्थिति में वह उसी कीमत को कम लाभ कमा कर के भी कायम रखना चाहेगी।

इसके विपरीत यदि मांग में कमी आ जाए तो कीमतों में गिरावट आनी चाहिए परंतु कोई अल्पाधिकारी इस डर से कीमत में कमी नहीं करेगा कि उसके ऐसा करने पर अन्य फर्में भी अपनी कीमतों को घटा देंगी।

ऐसी दशा में कीमत युद्ध छिड़ने का खतरा रहता है जिससे सभी फर्मों को हानि होगी इस तरह मांग के गिरने पर भी फर्म कीमत को स्थिर बनाए रखने का प्रयास करेगी भले ही वह अब पहले की अपेक्षा कम मात्रा बेच सकेगी।

 

चित्र द्वारा स्पष्टीकरण

Sweezy’s Kinked Demand Curve चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है चित्र में D1 मूल मांग वक्र है तथा MR1 उसके अनुरूप सीमांत आगम वक्र और सीमांत लागत वक्र है। मान लीजिए कि मांग में कमी आ जाती है जिसे D2 द्वारा दर्शाया गया है। इसके अनुरूप सीमांत आगम MR2 वक्र है जब मांग कम हो जाती है तो एक विक्रेता कीमत कम कर देता है और उसकी कीमत घटाने की इस चाल को अन्य विक्रेता अनुकरण करते हैं।

इससे नए मांग वक्र के नीचे का भाग LD2 पुराने मांग वक्र के नीचे के भाग HD1 की अपेक्षा अधिक बलोच हो जाता है यह L पर बने कोण को समकोण के निकट पहुंचा देगा इसका परिणाम यह होगा कि MR1 के AB अंतर की अपेक्षा MR1 का EF अंतर अधिक बड़ा हो जाएगा अतः सीमांत लागत वक्र MC1 सीमांत आगम वक्र MR2 को अंतर EF के भीतर कटेगा इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि अल्पाधिकार उद्योग में मांग कम होने पर भी कीमत स्थिर रहती है।

अब यदि मांग बढ़ जाए तो इससे कीमत बढ़ सकती है इसे हम उक्त चित्र द्वारा ही स्पष्ट कर सकते हैं। चित्र में मान लीजिए D2 मूल मांग वक्र तथा MR2 तथा MC2 मूल सिद्धांत आगम एवं सीमांत लागत वक्र है बढ़ी हुई मांग का मांग वक्र D1 तथा MR1 तथा MC1 क्रमशः सीमांत आगम एवं सीमांत लागत वक्र है जब मांग बढ़ गई तो एक विक्रेता अपनी कीमत को बढ़ाना चाहेगा और यह उम्मीद की जाती है कि अन्य उसका अनुसरण करेंगे ।

इससे पुराने मांग वक्र के NL भाग की अपेक्षा नए मांग वक्र का ऊपर का भाग KH अधिक लोचात्मक हो जाएगा इसलिए H बिंदु पर स्थित कोड एक अधिक कोण (जो समकोण से अधिक है) बन जाता है। MR1 में AB अंतर कम हो जाता है तथा वक्र MC2 वक्र MR1 को अंतर से ऊपर जाकर R पर काटता है जो अपेक्षाकृत ऊंची कीमत OP2 को प्रकट करता है हां यदि सीमांत लागत वक्र MR1 के अंतर में से (अर्थात AB के बीच से) गुजरे जैसा कि MC1 गुजरती है तो कीमत में स्थिरता होगी।

 

निष्कर्ष –

अल्पाधिकार के अंतर्गत कीमत स्थिरता की विवेचना को निष्कर्ष के रूप में हम इस तरह कर सकते हैं:

  1. अल्पाधिकार में व्याप्त अनिश्चितता को समाप्त करने के लिए कीमत स्थिरता की प्रवृत्ति होती है।
  2. मांग अथवा लागत में परिवर्तन होने पर भी कीमत में स्थिरता बनी रहती है।
  3. यदि लागत तथा मांग में अप्रत्याशित रूप से अधिक मात्रा में वृद्धि हो जाए तो कीमतें बढ़ सकती हैं।बशर्ते कि सभी फर्में में ऐसा करने को तैयार हो जाए।

 

यद्यपि किंकित या त्वरायुक्त मांग वक्र अल्पाधिकार में कीमत स्थिरता का स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है परंतु इसे पर्याप्त नहीं समझा जा सकता क्योंकि इसमें वस्तु विभेद पर ध्यान नहीं दिया गया है इसके साथ ही यह भी ध्यान देने योग्य है कि कीमत स्थिरता अन्य कारणों से भी हो सकती है यथा फर्मों के मध्य गुटबन्दी या समझौता कीमत नेतृत्व की उपस्थिति आदि।

स्टीगलर का तो यहां तक कहना है कि अल्पाधिकारी मांग वक्र में तो त्वरा का अस्तित्व ही नहीं होता।

इस तरह इस संबंध में अर्थशास्त्रियों की धारणा है कि अल्पाधिकार के अंतर्गत स्वतंत्र रूप से निर्धारित कीमत बहुत दिन तक स्थिर नहीं रह पाती क्योंकि लाभ अधिकतम करने के उद्देश्य से सभी फर्में अपनी उत्पादन लागत में कमी तथा उत्पादन मात्रा में वृद्धि कर अधिक से अधिक बाजार पर अधिकार करने का प्रयास करती हैं।

इसके फलस्वरूप परस्पर विरोध, अनिश्चितता तथा असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है जो कालांतर में गुटबंदी अथवा कीमत नेतृत्व का मार्ग प्रशस्त करती है।

 

अल्पाधिकार में कीमत स्थिरता के कारण

अल्पाधिकार में कीमत स्थिरता के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. यदि प्रचलित कीमत अल्पाधिकार के मध्य लंबे विचार-विमर्श एवं परामर्श द्वारा आपसी समझौते के आधार पर निर्धारित की गई है तो ऐसी दशा में कोई भी फर्म कीमत परिवर्तन करके नई समस्याओं को जोड़ने का प्रयास नहीं करेगी।
  2.  यह हो सकता है कि अल्पाधिकारी फर्मों ने अनुभव द्वारा यह सीख लिया हो की कीमत युद्ध से सभी को हानि ही होती है अतः इनसे बचने के लिए वे कीमत स्थिरता को धीमान देने लगे हो।
  3.  यह भी संभव है कि गुटबंदी के अंतर्गत फर्मों के परस्पर समझौते के आधार पर एक नीची कीमत नियत की हो इस तरह की कीमत नियत करने का उद्देश्य दीर्घकाल में अधिक लाभ कमाना तथा नई फर्मों को उद्योग में प्रवेश करने से रोकना होता है ऐसी दशा में कोई फर्म अपनी कीमत में तब तक परिवर्तन नहीं करना चाहेगी जब तक की मांग एवं पूर्ति की दशाओं में पर्याप्त अन्तर न हो जाए
  4.  कभी कभी फर्में इसलिए भी कीमत में परिवर्तन नहीं करना चाहती क्योंकि उन्होंने विज्ञापन एवं विक्रय आदि पर पर्याप्त व्यय करके क्रेताओं को प्रचलित कीमत पर वस्तुएं खरीदने के लिए तैयार कर लिया है ऐसी दशा में वे कीमतों में परिवर्तन कर ग्राहकों की मनोवृति को भी बिगाड़ना नहीं चाहेंगे अतः कीमतें स्थिर रहेंगी।
  5. यदि किन्हीं कारणों से मांग में गिरावट आ जाती है तब भी फर्में विज्ञापन तथा विक्रय लागते बढ़ाकर कीमत को उसी स्तर पर बनाए रखना चाहती हैं इसके विपरीत मांग में वृद्धि होने पर कोई फर्म अपनी कीमत नहीं बढ़ाना चाहेगी क्योंकि यदि प्रतिद्वंद्वियों ने कीमत न बढ़ाई तो यह फर्म अपने सारे ग्राहक खो देगी।
  6.  अल्पाधिकार में Sweezy’s Kinked Demand Curve विश्लेषण कीमत स्थिरता लाता है अल्पाधिकार में प्रत्येक फर्म के समक्ष एक अनिश्चित मांग वक्र होता है क्योंकि उद्योग में फर्मों की संख्या कम होती है अतः प्रत्येक फर्म को कीमत निर्धारित करते समय अपने प्रतिद्वंद्वियों की प्रतिक्रियाओं तथा चालों को ध्यान में रखना होता है।
  7.  यदि सभी फर्में समरूप वस्तु का उत्पादन करती हैं तथा यदि कोई फर्क कीमत घटाकर अपनी वस्तु की बिक्री करने का प्रयास करती है तो कीमत युद्ध छिड़ जाने का खतरा रहता है यदि वस्तु थोड़ी भेदीकृत भी हो तब भी मांग वक्र की अनिश्चितता के कारण कीमत तथा उत्पादन मात्रा  अनिश्चित रहेगी ऐसी दशा में भी कीमत युद्ध की संभावना रहती है अतः कोई फर्म अपनी कीमत नीति में परिवर्तन करने का प्रयास नहीं करेगी

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