Our Solar System सौर मंडल

आकाशीय पिंड या खगोलीय पिंड (Celestial Body)

पृथ्वी से आकाश में दिखाई देने वाली यह सभी आकृतियां आकाशीय पिंड या खगोलीय पिंड कहलाते हैं इनमें सूर्य,चंद्रमा, तारे आदि शामिल हैं।

दूरदर्शी (Telescope)

रात के समय आकाश में  टिमटिमाती हुई आकृतियों में तारे और आकाशीय पिंड शामिल है तारे गर्म गैसों से बने हुए हैं इनमें स्वयं द्वारा उत्पन्न प्रकाश एवं उस्मा होती है हमारे आकाश में अरबों तारे हैं बहुत से तारे हमसे इतने ज्यादा दूर है कि उन्हें हम बिना शक्तिशाली दूरदर्शी के नहीं देख सकते हमारा सूर्य  भी एक तारा है जो पृथ्वी के सबसे निकट है।

नक्षत्र मंडल (Constellation)

रात्रि के आकाश में हमें तारों के समूह द्वारा बनाई गई विभिन्न आकृतियां दिखाई देती हैं जिन्हें हम नक्षत्र मंडल कहते हैं।

नक्षत्र मंडलों की संख्या-(Number of Constellations)

खगोलविदों के अनुसार- आकाश में कुल 88 नक्षत्र मंडल हैं जिनमें से आसानी से पहचाने जाने वाले कुछ प्रमुख नक्षत्र मंडल ओरियन अर्सा मेजर बिग बियर केनिस मेजर ब्रेक डांस एवं इस मालवीय सप्त ऋषि मंडल प्राचीन काल से ही सप्तर्षि मंडल एवं ध्रुवतारे की सहायता से उत्तर दिशा का निर्धारण किया जाता है ।

सौर मंडल-(Solar System)

सूर्य ग्रह इन ग्रहों के उपग्रह तथा अन्य खगोलीय पिंड जैसे क्षुद्रग्रहों, पुच्छल तारा एवं उल्कापिंड मिलकर Solar System का निर्माण करते हैं इसे हम सौर परिवार भी कहते हैं क्योंकि सौर परिवार का मुखिया सूर्य है यह हमारे Solar System के केंद्र में स्थित है सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव के कारण सौर परिवार के अन्य सभी सदस्य सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करते रहते हैं।

 सूर्य (Sun)

सूर्य Solar System के केंद्र में स्थित अत्यधिक गर्म गैसों से बना तारा है, इसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन और हिलियम गैसें पाई जाती हैं यह बहुत बड़ा है हमारी पृथ्वी जैसे- लगभग 13 लाख गोले इसमें समा सकते हैं यह समूचे Solar Systemको ऊष्मा एवं प्रकाश प्रदान करता है ।सूर्य हमारी पृथ्वी से लगभग 15 करोड़ किलोमीटर दूर स्थित है ।300000 किलोमीटर प्रति सेकंड की चाल से सूर्य का प्रकाश 8 मिनट 19 सेकंड में सूर्य से पृथ्वी तक पहुंचता है

ग्रह (Planets)

जो आकाशीय पिंड अपने तारों के चारों ओर निर्धारित कक्षा में चक्कर लगाते हैं उन्हें ग्रह कहते हैं। इनमें स्वयं का प्रकाश व ऊष्मा नहीं होती है यह अपने तारों के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं जैसे हमारी पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है।

किसी आकाशीय पिंड के ग्रह होने के लिए उनका आकार इतना बड़ा होना चाहिए कि  गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से इनकी आकृति लगभग गोल हो तथा यह किसी अन्य ग्रह की कक्षा को काटते हो।हमारे Solar System में आठ ग्रह सूर्य से बढ़ती दूरी के अनुसार का क्रम-

  1. बुध
  2. शुक्र
  3. पृथ्वी
  4. मंगल
  5. बृहस्पति
  6. शनि
  7. अरुण
  8. वरुण

Solar System के सभी आठ ग्रह अपनी धुरी पर लड्डू की भांति घूमते हुए सूर्य के चारों और चक्कर लगाते हैं ।सूर्य व अरुण ग्रह को छोड़कर शेष सभी ग्रह घड़ी की सुई की विपरीत दिशा में अपनी कक्षा में सूर्य की परिक्रमा करते हैं इन ग्रहों का अपनी धुरी पर घूमना परिभ्रमण (rotation) एवं सूर्य के चारों ओर घूमना परिक्रमण (revolution) कहलाता है।

Earth in Solar System

पृथ्वी

सूर्य से दूरी के क्रम में पृथ्वी तीसरा ग्रह आकार में यह पांचवा सबसे बड़ा ग्रह है हमारी पृथ्वी लगभग गोल आकार की है यह ध्रुवों पर थोड़ी चपटी तथा मध्य में थोड़ीउभरी हुई है इसलिए इसके आकार को भूआभ (Geoid)कहा जाता है ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियां संभवतः केवल पृथ्वी पर पाई जाती है। इसलिए इसे हरितगृह ही कहा जाता है। पृथ्वी पर जल की अधिकता के कारण अंतरिक्ष से देखने पर नीले रंग की दिखाई देती है इसलिए इसे नीला ग्रह कहा जाता है।

अंतरिक्ष से देखने पर पृथ्वी नीली दिखाई पड़ती है।जबकि पृथ्वी का वायुमंडल अंतरिक्ष से देखने पर काला दिखाई पड़ता है।

उपग्रह-Satellite

कुछ आकाशीय पिंड अपने ग्रह की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा करते हैं अपने ग्रह की परिक्रमा करने के कारण इन्हें उपग्रह कहते हैं जैसे चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है यह पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह है।

चंद्रमा हमारी पृथ्वी का एकमात्र उपग्रह चंद्रमा है इसका व्यास पृथ्वी के व्यास का एक चौथाई है क्या हमारी पृथ्वी के सर्वाधिक निकट स्थित आकाशीय पिंड है पृथ्वी से इसकी दूरी लगभग 384000 किलोमीटर है

यह सूर्य के प्रकाश से प्रकाशित होता है चंद्रमा से परावर्तित प्रकाश जब पृथ्वी के धरातल पर पड़ता है तो चंद्रमा के प्रकाश को चांदनी कहते हैं पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होने के कारण यह रात्रि के आकाश में सबसे बड़ा और चमकीला दिखाई देता है।

 क्षुद्र ग्रह(Asteroides)

मंगल एवं बृहस्पति की कक्षाओं के बीच असंख्य छोटे-छोटे पिंड पाए जाते हैं यह भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं इन्हें  क्षुद्र ग्रह कहते हैं  खगोल वेदों के अनुसार  क्षुद्र ग्रह ग्रहों के टुकड़े हैं जो करोड़ों वर्ष पहले विस्फोट से बिखर गए थे।

उल्कापिंड या उल्काश्म-(Meteoroides)

उल्कापिंड या उल्काश्म धूल व गैसों से निर्मित छोटे-छोटे पिंड अंतरिक्ष में घूमते रहते हैं जब यह पिंड घूमते घूमते पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर जाते हैं तो घर्षण के कारण यह जलने लगते हैं तथा तेजी से पृथ्वी की ओर बढ़ते हैं इसे ही टूटता हुआ तारा कहते हैं

प्रायः यह छोटे-छोटे पिंड वायुमंडल में ही जलकर नष्ट हो जाते हैं जिन्हें उल्काश्म कहा जाता है कभी-कभी यह पिंड पूर्ण रूप से जलकर नष्ट नहीं हो पाते तथा इनका कुछ अवशिष्ट भाग पृथ्वी के धरातल पर पहुंच जाता है इसी अवशिष्ट पिंड को उल्कापिंड कहा जाता है।

 पुच्छल तारे (Comets)

पुच्छल तारे  अथवा धूम्रकेतु चट्टानों पर धूल और गैस के बने आकाशीय पिंड होते हैं अक्सर यह आकाशीय पिंड अपनी कक्षा में घूमते हुए सूर्य के पास आ जाते हैं सूर्य के ताप के कारण  इसकी गैस, धूल और वाष्प में बदल जाती है यही वाष्प मुख्य पिंड से एक लंबी सी चमकीली पूँछ के रूप में बाहर निकल जाती है गुरुत्वाकर्षण के कारण इस तारे का सिर सूर्य की तरफ तथा पूँछ हमेशा ही बाहर की तरफ होता है जो हमें चमकीली दिखाई देता है।

कुइपर मेखला (Kuiper Belt)

यह नेप्चून के पार Solar System के आखिरी सिरों पर एक तश्तरी के आकार की विशाल पट्टी है इसमें असंग खगोलीय पिंड उपस्थित हैं जिनमें कई बर्फ से बने हैं धूम्रकेतु इसी क्षेत्र से आते हैं खगोलविदों का अनुमान है कि यहां ग्रह जैसे कई बड़े आकाशीय पिंड भी हो सकते हैं प्लूटो भी इसी मेंखला में स्थित है।

वायुमंडलीय दाब atmospheric pressure

क्या आप जानते हैं हमारे सौरमंडल (Solar System) में अगस्त 2006 के पहले नौ ग्रह माने जाते थे । प्लूटो नौवाँ ग्रह था यह नेपच्यून की कक्षा का अतिक्रमण करता था 24 अगस्त 2006 को अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने यम को ग्रह की श्रेणी से हटा दिया, मार के भगा दिया ।

ब्रह्मांड -(Universe)

क्या आपने तारों भरे खुले आकाश में एक ओर से दूसरी ओर तक फैली चौड़ी सफेद पट्टी की तरह चमकदार पत्र को देखा है यह करोड़ों तारों का समूह है इस पट्टी को आकाशगंगा कहते हैं हमारी आकाशगंगा का नाम मंदाकिनी है जो भाग पृथ्वी से दिखाई देता है। उसे मिल्की वे कहते हैं इसका आकार सर्किलाकार तश्तरी जैसा है। इसमें लगभग एक अरब तारे हैं। हमारा सौरमंडल इसी आकाशगंगा का एक भाग है इस प्रकार की करोड़ों आकाशगंगाएँ मिलकर हमारे ब्रह्मांड का निर्माण करती हैं।

ब्रह्मांड की उत्पत्ति-बिग बैंग-Origin of the Universe – Big Bang

आज से लगभग 13 अरब वर्ष पहले पूरा का पूरा ब्रह्मांड एक गर्म और सघन छोटे से गोले के रूप में था अधिक गर्मी और सघनता के कारण इसमें अचानक विस्फोट हुआ इस विस्फोट को बिग बैंग कहा जाता है विस्फोट के बाद ब्रह्मांड तेजी से फैलने लगा या फैला आज भी जारी है।

बिग बैंग की घटना के कुछ करोड़ वर्ष के बाद तारों और आकाशगंगाओं का निर्माण होने लगा वास्तव में आकाशगंगा का निर्माण हाइड्रोजन हीलियम गैसों तथा धूल कणों से बने विशाल बादल के इकट्ठा होने से हुआ है। आकाश गंगा को बनाने वाले इन बादलों को निहारिका कहते हैं।

गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव के कारण इन बादलों से गैसीय पिंड बने जिससे तारों का निर्माण प्रारंभ हुआ आकाशगंगा के केंद्र में एक विशाल ब्लैक होल है जो गुरुत्व केंद्र का कार्य करता है इसके कारण आकाशगंगा का संयुक्त बना रहता है स्थायित्व

हमारा सूर्य अपनी आकाशगंगा में लगभग 100 अरब तारों में से एक तारा है आज से लगभग 5 अरब वर्ष पूर्व मंदाकिनी आकाशगंगा की बाहरी भुजा में हमारे तारे सूर्य का जन्म हुआ सूर्य अपनी जन्म से ही आकाशगंगा के केंद्र की परिक्रमा कर रहा है वर्तमान में यह आकाशगंगा की बीच की भुजा में स्थित है सूर्य की उत्पत्ति के कुछ समय बाद उसके चारों ओर छोटे-छोटे आकाशीय पिंडों और गैसीय बादलों का संचयन होने लगा इस संचयन के परिणाम स्वरूप ग्रहों, उपग्रहों, क्षुद्रग्रहों, पुच्छल तारों आदि का निर्माण होने लगा इस प्रकार धीरे-धीरे हमारा सौरमंडल अपने वर्तमान स्वरूप को प्राप्त किया।

कृष्ण विवर (Black Hole)

एक ऐसी आकाशीय पिंड है जिसका बहुत अधिक भार अथवा द्रव्यमान अत्यंत सीमित स्थान पर एकत्र रहता है। अर्थात इस का घनत्व बहुत अधिक होता है इस कारण ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण बल इतना शक्तिशाली होता है कि कुछ भी इसके खिंचाव / आकर्षण से बच नहीं सकता यहां तक कि अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश को भी अवशोषित कर लेता है अर्थात इसमें जाने वाला प्रकाश भी इससे बाहर नहीं आ पाता इसलिए यह दिखाई भी नहीं देता इसके स्थान पर केवल काला रंग ही दिखाई देता है इसलिए इसे कृष्ण विवर (Black Hole) कहा जाता है।

 

Note’s

  1.  शुक्र एवं अरुण को छोड़कर सभी ग्रह घड़ी की सुई के विपरीत दिशा में परिभ्रमण एवं परिक्रमण करते हैं इन दोनों ग्रहों की परिभ्रमण एवं परिक्रमण की दिशा घड़ी की सुई की दिशा में होती है अरुण के उपग्रह भी उसके चारों ओर घड़ी की सुई की दिशा में परिक्रमा करते हैं।
  2. अंतरिक्ष-  विभिन्न आकाशीय पिंडों के बीच वायु रहित रिक्त स्थान।
  3. ब्रह्मांड- असीम विशाल अंतरिक्ष जिसमें करोड़ों आकाशगंगाएं हैं।
  4. उपग्रह- वह आकाशीय पिंड जो ग्रह की परिक्रमा करते हुए सूर्य की परिक्रमा पूरी करता है।
  5. खगोलविद्- वे वैज्ञानिक जो ब्रह्मांड के विषय में जानकारी प्राप्त करते हैं।
  6. सबसे दूर स्थित मंदाकिनी से चले प्रकाश को हमारी पृथ्वी तक पहुंचने में 1000 करोड़ वर्ष लग जाएंगे।
  7. प्रकाश को आकाशगंगा के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचने में 1लाख वर्ष लगेंगे।
  8. प्रकाश 3 लाख किलोमीटर  प्रति सेकंड की गति से चलता है फिर भी सौरमंडल पार करने में 24 घंटे लगते हैं।

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