मैरिस का वृद्धि अधिकतमीकरण | Marris’ Growth Maximization Theory

अपने लाभांश और शेयर कीमतों में वृद्धि करना फर्म की ऐसी वृद्धि दर और शेयर कीमतों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए मैरिस एक सतत अवस्था मॉडल विकसित करते हैं। जिसमें प्रबंधक एक स्थिर वृद्धि दर चुनता है जिस पर फर्म के विक्रय लाभ परिसंपत्तियों आदि में वृद्धि होती है क्योंकि इससे उन्हें अपनी पूंजी पर उचित प्रतिफल प्राप्त होता है इस तरह प्रबंधक एवं शेयरधारक दोनों ही फर्म की संतुलित वृद्धि दर की प्राप्ति का प्रयास करते हैं।

 मान्यताएं

Marris’ Growth Maximization Theory

मैरिस का वृद्धि अधिकतमीकरण सिद्धांत या मैरिज का मॉडल निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है कीमत ढांचा तथा उत्पादन लागतें दी हुई हैं।

अल्पाधिकार में परस्पर निर्भरता नहीं है।

फर्में विविधीकरण द्वारा वृद्धि करतीं हैं।

साधन कीमतें दी हुई हैं।

सभी मुख्य चर― लाभ, विक्रय और लागतें एक ही दर पर वृद्धि करती हैं।

 मॉडल

Marris’ Growth Maximization Theory

उपरोक्त मान्यताओं के दिए होने पर फर्म का उद्देश्य होता है अपनी संतुलित वृद्धि दर (G)को अधिकतम करना। G स्वयं दो घटकों पर निर्भर करती है :

 प्रथम― फर्म की वस्तु के लिए मांग की वृद्धि दर (GD); तथा

द्वितीय― पूंजी आपूर्ति की वृद्धि दर (GS) इस तरह, G = GD = GS ।

मैरिस की धारणा है कि आधुनिक बड़ी फर्मों में स्वामित्व प्रबंधन से अलग होता है फिर भी मालिकों (शेयरधारकों) और प्रबंधकों का एक सामूहिक उद्देश्य फर्म की संतुलित वृद्धि करना होता है। मैरिस के अनुसार फर्म के प्रबंधक और स्वामी के दो भिन्न भिन्न उपयोगिता फलन होते हैं प्रबंधक के उपयोगिता फलन में उसकी आय शक्ति नौकरी की सुरक्षा आदि सम्मिलित हैं जबकि स्वामी की उपयोगिता फलन में लाभ पूंजी उत्पादन बाजार का भाग आदि शामिल है।

मैरिस का वृद्धि अधिकतमीकरण सिद्धांत – एक बड़ी फर्म के प्रबंधक का उद्देश्य अपनी उपयोगिता को अधिकतम करना होता है और उसकी उपयोगिता फर्म की वृद्धि दर पर निर्भर करती है फर्म की वृद्धि दर को कायम रखते हुए अपनी नौकरी को सुरक्षित बनाए रखना प्रबंधन का उद्देश्य होता है प्रबंधन की नौकरी की सुरक्षा शेयरधारकों की संतुष्टि पर निर्भर करती है जिनका संबंध फर्म की शेयर कीमतों और लाभांशो को अधिकतम अधिक से अधिक ऊंचा रखना होता है।

मैरिस का वृद्धि अधिकतमीकरण सिद्धांत -मैरिस उस साधन का विश्लेषण करता है जिसके द्वारा फर्म अपने वृद्धि अधिकतम उद्देश्य को पूरा करने का प्रयत्न करती है फर्म नई वस्तुओं का निर्माण करके जो आगे नई मांगों का सृजन करती है अपने आकार में वृद्धि करती है। मैरिस इसे विभेदक विविधीकरण कहता है नई वस्तुओं को आरंभ करना विविधीकरण कि दर विज्ञापन व्यय तथा शोध एवं विकास व्यय आदि पर निर्भर करता है।

मैरिस मांग पक्ष की ओर से वृद्धि और लाभ के बीच संबंध नई वस्तुओं के विविधीकरण द्वारा स्थापित करता है वृद्धि और लाभों के बीच संबंध वृद्धि के भिन्न-भिन्न स्तरों पर भिन्न होते हैं। जब फर्म की वृद्धि दर नीची होती है तो दोनों में संबंध धनात्मक होता है।

जब नवीन वस्तुओं का उत्पादन प्रारंभ होता है तो फर्म का विस्तार होता है और लाभ बढ़ते हैं नवीन वस्तुओं में अधिक विविधीकरण होने से जब वृद्धि दर और बढ़ जाती है तब वृद्धि लाभ संबंध ऋणात्मक हो जाता है ऐसा प्रबंधकीय अवरोध के कारण होता है इसे चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

चित्र द्वारा स्पष्टीकरण

Maris’ Growth Maximization Theory

चित्र में GD वक्र पहले बढ़ता है उच्चतम बिंदु M तक पहुंच जाता है फिर गिरने लगता है वृद्धि लाभों का एक अन्य पहलू पूंजी आपूर्ति की वृद्धि दर है शेयरधारकों का उद्देश्य पूंजी स्टाक की वृद्धि दर को अधिकतम करना है इसकी वृद्धि के लिए वित्त का प्रमुख स्रोत लाभ है अतः पूर्ति की ओर वृद्धि को लाभ निर्धारित करते हैं लाभ पूंजी बाजारों से अधिक निधियों को एकत्र करने में सहायक होता है इस प्रकार यह वृद्धि की ऊंची दर के लिए निधियां प्रदान करता है।

स्पष्टतया लाभों और वृद्धि के बीच धनात्मक संबंध होता है इसे चित्र में मूल बिंदु से सीधी रेखा GS द्वारा प्रदर्शित किया गया है।

फर्म के संतुलन के लिए, वृद्धि मांग और वृद्धि पूर्ति संबंध आवश्यक संतुष्ट होना चाहिए यह तब होता है जब दोनों वक्र GD और GS ऐसे बिंदु पर काटते हैं जहां वृद्धि लाभों का संयोग इष्टतम होता है।

मान लीजिए कि चित्र में GS2 वक्र GD वक्र को बिंदु M पर काटता है जहां लाभ अधिकतम होते हैं। यह बिंदु इष्टतम हल प्रदान नहीं करता क्योंकि प्रबंधक अधिक वृद्धि की इच्छा करते हैं जो दीर्घकालीन लाभ अधिकतम करने के साथ मेल नहीं खाता है वे जिस सीमा तक वृद्धि दर को M बिंदु से आगे बढ़ा सकते हैं, वह उनकी नौकरी सुरक्षा पर निर्भर करता है उनकी नौकरी सुरक्षा संकट स्थिति में होती है यदि शेयर धारक यह महसूस करते हैं कि शेयर कीमतें और लाभांश कम हो रहे हैं और अन्य फर्मों द्वारा उसे अधिकार में लेने का भय है यह पूंजी सप्लाई (GS) की वृद्धि दर को प्रभावित करेगा।

धारण अनुपात-

(Marris’ Growth Maximization Theory)

मैरिस के अनुसार धारण अनुपात पूंजी सप्लाई की वृद्धि दर को निर्धारित करता है धारित लाभों का कुल लाभों के साथ अनुपात धारण अनुपात है यदि धारण अनुपात बहुत नीचा है तो इसका अर्थ है कि लगभग सभी लाभ शेयरधारकों को वितरित कर दिए गए हैं परिणाम स्वरूप फर्म की वृद्धि के लिए प्रबंधकों के पास सीमित निधियां उपलब्ध हैं और वृद्धि दर बहुत नीची होगी वृद्धि पूर्ति वक्र बहुत तिरछा होगा जैसा कि GS1 वक्र है। फर्म का संतुलन बिंदु N होगा जहां GS1 वक्र GD वक्र को काटता है। यह भी फर्म का इष्टतम संतुलन बिंदु नहीं है। क्योंकि इस बिंदु पर वृद्धि दर कम है और लाभ अधिकतम स्तर से नीचे है।

फर्म की वृद्धि के लिए प्रबंधकों को अधिक धारित लाभ चाहिए ताकि वे फर्म की वृद्धि के लिए अधिक निधियां निवेश कर सकें यह धारित अनुपात को बढ़ाते हैं जो आगे ऊंचे लाभों और ऊंची वृद्धि दरों को लाता है जब तक कि अधिकतम लाभ का बिंदु M नहीं पहुंच जाता है यह भी फर्म का इष्टतम संतुलन बिंदु नहीं है क्योंकि प्रबंधक यह महसूस करते हैं कि ऊंची वृद्धि दर और उनके लाभों का यह संयोग शेयरधारकों द्वारा अनुमोदित होता है और उनकी नौकरी सुरक्षा को कोई भय नहीं है।

इसलिए वे धारण अनुपात को और बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित होंगे अधिक निधियां निवेश करेंगे प्रसार करेंगे और फर्म की वृद्धि दर को बढ़ाएंगे परिणाम स्वरुप वृद्धि पूर्ति वक्र चपटा हो जाएगा और GS3 की आकृति अपनाएगा जैसा की चित्र में जहां वह GD वक्र को बिंदु E पर काटता है इस बिंदु पर शेयरधारकों को वितरित लाभ कम होते हैं परंतु वे शेयरधारकों को संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त हैं इससे शेयरों की कीमतें गिरने और फर्मों द्वारा इस फर्म को अधिकार में लेने के कोई भय नहीं होते प्रबंधकों के लिए भी नौकरी की सुरक्षा रहती है।

इस तरह बिंदु E फर्म का उत्तम संतुलन बिंदु है यदि प्रबंधक इस स्तर से ऊंचा धारण अनुपात बनाते हैं तो वितरित लाभ और नीचे गिरेंगे जिसके फलस्वरूप शेयर धारक असंतुष्ट हो जाएंगे और प्रबंधक के नौकरी सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी यदि शेयरधारकों को कम लाभ वितरित करने से शेयरों की बाजार कीमत में गिरावट आती है तो इससे फर्म की अन्य फर्में अधिकार में ले सकती हैं।

मैरिस ने मूल्यांकन अनुपात के रूप में भी फर्म को अन्य फर्मों द्वारा अधिकार में लेने के विद्यमान रहने वाले डर की व्याख्या प्रस्तुत की है। मूल्यांकन अनुपात फर्म के शेयरों की बाजार कीमत का उनके बुक मूल्य के साथ अनुपात होता है मैरिस के अनुसार फर्में एक बिंदु के पश्चात वृद्धि करने से बचने का प्रयास करेंगे क्योंकि ऊंची स्थिर देयताएं वित्तीय सुरक्षा के लिए खतरा होती हैं, उन्हें एक न्यूनतम मूल्यांकन अनुपात की आवश्यकता होती है जो फर्म को अधिकार में लेने के विरुद्ध रक्षा और शेयरधारकों को उचित प्रतिफल की दर प्रदान करता है। नए शेयरों को जारी रखने की दर भी मूल्यांकन अनुपात को प्रभावित करती है।

फाई–रेनिस का विकास मॉडल | Growth Model of Fei-Ranis

 आलोचनाएं-

Marris’ Growth Maximization Theory

  1. मैरिस के मॉडल में कीमत ढांचे को दिया हुआ मान लिया गया है इसमें इस बात की व्याख्या नहीं की गई है कि बाजार में वस्तुओं की कीमतें कैसे निर्धारित होती हैं।
  2. इस मॉडल में गैर-कपट संधि बाजार में फर्मों की अल्पाधिकार परस्पर निर्भरता की उपेक्षा की गई है।
  3. यह मॉडल गैर-कीमत प्रतियोगिता द्वारा निर्मित निर्भरता का विश्लेषण भी नहीं करता।
  4. मॉडल में मान लिया गया है कि फर्में नई वस्तुओं का निर्माण कर निरंतर वृद्घि कर सकती हैं परंतु कोई फर्म उपभोक्ताओं को कोई भी नई वस्तु तब तक नहीं भेज सकती जब तक कि वह उसकी मांग के प्रति तत्परता नहीं दिखाते।
  5. मैरिस का मॉडल उपभोक्ता वस्तु फर्मों पर लागू होता है वह विनिर्माण व्यवसाय अथवा व्यापारियों के व्यवहार की व्याख्या नहीं करता।
  6. सभी फर्में रिसर्च एवं विकास पर व्यय नहीं करती। वस्तु विविधीकरण के लिए वे अन्य फर्मों के अविष्कार का अनुकरण करती हैं और पेटेंट आविष्कारों के प्रयोग के लिए रॉयल्टी देती हैं।
  7.  यह मान्यता भी आवश्यक है कि सभी चर जैसे- लाभ विक्रय और लागतें सब एक ही दर से बढ़ते हैं।
  8.  उस वृद्धि दर पर पहुंचना कठिन है जो फर्म के शेयरों के बाजार मूल्य को अधिकतम बनाती है और जिस दर पर फर्म का किसी अन्य फर्म द्वारा अधिकार किया जाता है।

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