difference between static and dynamic analysis

स्थैतिक, प्रावैगिक विश्लेषण में अंतर|difference static and dynamic

स्थैतिक का आशय

भौतिक शास्त्र में स्थैतिक का आशय विश्राम से है या ऐसी स्थिति से है जिसमें गति का पूर्ण अभाव हो। परन्तु, अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग इस रूप में नहीं किया जाता है।

आर्थिक विश्लेषण में स्थैतिक से अभिप्राय गतिहीनता की ऐसी स्थिति से नहीं है जिसमें सभी चीजें मृतक पड़े हैं बल्कि ऐसी स्थिति से है जिसमें गति तो है परिवर्तन भी है पर इसके बावजूद भी उसका स्वरूप अपरिवर्तित रहता है।

परिभाषा

प्रो. पीगू के अनुसार– उन्होंने कहा है कि “जिन बूंदों से मिलकर झरना बनता है वह तो सदा बदलती है किंतु झरना अपरिवर्तित ही रहता है।” यही स्थैतिक अवस्था का प्रतीक है

प्रो. जे. के. मेहता – स्थैतिक स्थिति वह है जो एक निश्चित समय के पश्चात भी उसी रूप में बनी रहती है पर यदि निश्चित समय के पश्चात उस अवस्था में परिवर्तन हो जाता है तो उसे प्रावैगिक स्थिति कहते हैं।

प्रो.  हिक्स एक आर्थिक सिद्धांत के उन भागों को आर्थिक स्थिति कहा जाता है जिनमें हम काल निर्धारण का ध्यान नहीं रखते और प्रावैगिक उन भागों को कहते हैं जिनमें प्रत्येक इकाई या मात्रा के संबंध में काल निर्धारण आवश्यक होता है।

प्रो. हैरोड ने हिक्स के इस दृष्टिकोण की आलोचना की है।

हैरोड के अनुसार “एक स्थैतिक संस्कृति का अर्थ विश्राम की अवस्था नहीं है बल्कि वह अवस्था है जिसमें कि दिन प्रति-दिन और वर्ष प्रति-वर्ष कार्य निरंतर हो रहा हो परंतु उसमें वृद्धि या कमी न हो रही हो। इस सक्रिय पर अपरिवर्तनशील क्रिया को स्थैतिक अर्थशास्त्र कहा जाना चाहिए।”

प्रो. शुंपीटर स्थैतिक आर्थिक विश्लेषण को इस प्रकार स्पष्ट करते हैं “स्थैतिक विश्लेषण से हमारा अभिप्राय आर्थिक सिद्धांतों की व्याख्या करने वाली ऐसी विधि से है जो आर्थिक निकाय के विभिन्न तत्वों- मूल्य तथा वस्तु की मात्रा, जो एक ही समय से संबंधित है के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास करती है मांग तथा पूर्ति का सामान्य सिद्धांत जो किसी वस्तु के बाजार से संबंधित है इस स्थिति को प्रदर्शित करता है

आर्थिक विश्लेषण के अंतर्गत हम आर्थिक चरों के बीच फलनात्मक संबंध का अध्ययन करते हैं यदि दो ऐसे चरों के बीच फलनात्मक संबंध स्थापित हो जाए जिनका मूल्य एक ही समय बिंदु अथवा एक ही समयावधि से संबंधित हो तो विश्लेषण स्थैतिक कहलाएगा।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सम्बद्ध चरों के बीच स्थैतिक संबंध का विश्लेषण ही स्थैतिक विश्लेषण है और इस प्रकार का संबंध तभी स्थैतिक कहलाएगा जबकि आर्थिक चरों का मूल्य एक ही समय बिंदु अथवा एक ही समय अवधि से संबंधित हो।

उदाहरण स्वरूप मांग के नियम को लीजिए जो स्थैतिक विश्लेषण का स्पष्ट उदाहरण है यह नियम मांगी गई वस्तु की मात्रा (D) तथा वस्तु के मूल्य (P) के बीच एक निश्चित समय बिंदु पर फलनात्मक संबंध व्यक्त करता है-

Dt= f (Pt)

जिसमें Dt = t अवधि में मांग, Pt = t अवधि में मूल्य तथा f= फलन का प्रतीक है अर्थात मांग के नियम को व्यक्त करने वाला यह समीकरण t अवधि में ही मांग तथा मूल्य के बीच फलनात्मक संबंध का अध्ययन करता है इस नियम के अनुसार यदि अन्य बातें समान रहे तो एक दिए हुए समय बिंदु पर वस्तु की मांगी गई मात्रा तथा उसके मूल्य के बीच विपरीत संबंध पाया जाएगा।

प्रवैगिक आर्थिक विश्लेषण/dynamic economic analysis

प्रो. शुंपीटर की परिभाषा–

इस दृष्टि से प्रो. शुंपीटर की परिभाषा उल्लेखनीय है उनके शब्दों में हम किसी संबंध को प्रवैगिक तब कहेंगे जबकि यह विभिन्न समय बिंदुओं से संबंधित आर्थिक परिमाप को जोड़ दें इस प्रकार यदि किसी वस्तु की वह मात्रा जो किसी समय बिंदु (t) पर भेजने के लिए प्रस्तुत की जाती है (t-1) अवधि में प्रचलित मूल्य पर निर्भर करें तो यह एक प्रवैगिक संबंध है।

रैगनर फ्रिश के अनुसार-

रैगनर फ्रिश के अनुसार कोई भी प्रणाली प्रवैगिक कही जाएगी यदि समयांतर में उसके व्यवहार का निर्धारण फलनात्मक समीकरणों द्वारा हो जिनमें विभिन्न समय बिंदुओं से संबंधित चर आवश्यक रूप से सम्मिलित हो

प्रो. जे. के. मेहता

प्रो. जे. के. मेहता ने प्रवैगिक अर्थशास्त्र पर विचार करते हुए स्पष्ट शब्दों में लिखा एक प्रवैगिक प्रणाली में प्रवैगिक प्रक्रिया का विकास स्वतः सृजनात्मक होता है एक परिवर्तन दूसरे को स्वतः जन्म देता है और इस प्रकार परिवर्तनों की श्रृंखला निरंतर चलती रहती है यह परिवर्तन बाह्य परिवर्तनों से स्वतंत्र होते हैं।

प्रो. मेहता के शब्दों में साधारण भाषा में हम कह सकते हैं कि उस समय एक अर्थव्यवस्था प्रवैगिक प्रणाली के अंतर्गत कही जा सकती है जबकि इसके विभिन्न चरणों जैसे-

उत्पादन, मांग, मूल्य आदि का किसी समय में मूल्य किसी अन्य समय के मूल्य से स्वतंत्र हो यदि आप उनका मूल्य किसी एक समय बिंदु पर जानते हैं तो उनके मूल्य को आने वाले समय बिंदुओं पर भी जान सकते हैं एक गत्यात्मक प्रवैगिक प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य बाह्य शक्तियों पर निर्भर नहीं करते हैं एक प्रवैगिक प्रणाली आत्मनिर्भर है।

प्रो. हिक्स

प्रो. हिक्स ने प्रवैगिक विश्लेषण को अत्यंत ही सरल ढंग से परिभाषित करने का प्रयास किया है उनके अनुसार आर्थिक सिद्धांत के उन भागों को आर्थिक स्थैतिक कहा जाता है जिनमें हम तिथि निर्धारण का ध्यान नहीं रखते और प्रवैगिक उन भागों को कहते हैं जिनमें प्रत्येक इकाई के संबंध में तिथि निर्धारण आवश्यक होता है सरल होते हुए भी हिट्स के इस दृष्टिकोण की अनेक आधारों पर आलोचना की जाती है

हैराॅड के अनुसार

हैराॅड ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक word a dynamic economy में प्रवैगिक अर्थशास्त्र के एक सर्वथा नये दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया है।

हैराॅड के अनुसार प्रवैगिक अर्थशास्त्र परिवर्तन की दर या समृद्धि की दर से संबंधित है उनके अनुसार प्रारंभिक अर्थशास्त्र ऐसी अर्थव्यवस्था का अध्ययन है जिसमें उत्पादन की दरें परिवर्तित हो रही हैं तथा वे प्रवैगिक अर्थशास्त्र को एक विकसित होती हुई अर्थव्यवस्था के विभिन्न तत्वों के आर्थिक समृद्धि की दरों के बीच आवश्यक संबंधों के अध्ययन के रूप में परिभाषित करते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि हैराॅड का प्रवैगिक अर्थशास्त्र संबंधी दृष्टिकोण एक विकसित तथा परिवर्तन अर्थव्यवस्था से ही संबद्ध है कि स्थैतिक अर्थव्यवस्था इसके क्षेत्र से बाहर है।

अपने प्रवैगिक आर्थिक दृष्टिकोण के आधार पर हैराड ने एक पूंजीवादी विकसित अर्थव्यवस्था के संबंध में एक प्रवैगिक समष्टभावी आर्थिक विकास मॉडल की रचना की है, जिसमें उन्होंने विकास की अभीष्ट दर की व्याख्या की है जिस पर यदि अर्थव्यवस्था विकसित होती रहे तो अर्थव्यवस्था में स्थिर विकास की अवस्था बनी रहेगी।

फ्रिश तथा हैराड-

आधुनिक आर्थिक सिद्धांत के क्षेत्र में दोनों ही– फ्रिश तथा हैराड- के सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है फ्रिश के दृष्टिकोण के अनुसार व्याख्या करने के लिए अवधि विश्लेषण तथा हैराड के दृष्टिकोण के आधार पर व्याख्या के लिए परिवर्तन की दर विश्लेषण  का प्रयोग किया जाता है।  आर्थिक प्रगति को व्यष्टि तथा समष्टि दोनों को उदाहरण से समझा जा सकता है।

स्थैतिक, प्रावैगिक विश्लेषण में अंतर difference static and dynamic analysis

समयतत्व-

difference static and dynamic analysis-static and dynamic के बीच सबसे प्रमुख तथा मूलभूत अंतर यह है कि प्रवैगिक अर्थशास्त्र में समय तत्व को प्रधान स्थान प्राप्त है वस्तु स्थिति तो यह है कि समय तत्व के अभाव में विश्लेषण स्थैतिक हो जाता है

इस प्रकार एक स्थैतिक विश्लेषण में समय तत्व की अवहेलना की जाती है हम पहले भी पढ़ चुके हैं कि जब विश्लेषण के संबंध में प्रयोग में आने वाली सभी चर एक ही समय अवधि से संबंधित हो तो विश्लेषण स्थैतिक होता है।

जैसे Dt= f (Pt) अर्थात t अवधि की मांग (D) अवधि के ही मूल्य (Ptt) का फलन है या Ct= f (Yt) जिसमें t अवधि का उपभोग (C) t अवधि की ही आय(Y) का फलन है। पहले उदाहरण उदाहरण में D तथा P दूसरे में C तथा Y सभी एक ही समयावधि t से संबंधित है पर यदि विश्लेषण में प्रयोग में आने वाले सभी चर विभिन्न समयावधियों से संबंधित हो तो विश्लेषण प्रवैगिक होगा।

समयावधि-

difference static and dynamic analysis- स्थैतिक अर्थशास्त्र का संबंध किसी एक समय बिंदु से होता है जबकि प्रवैगिक विश्लेषण का संबंध समयावधि से होता है एक समय बिंदु पर विश्लेषण होने के कारण स्थैतिक अर्थशास्त्र में आर्थिक निकाय या चरों में होने वाले परिवर्तनों को सरलता पूर्वक बिना किसी हिचकिचाहट के छोड़ दिया जाता है या छोड़ा जा सकता है पर प्रवैगिक विश्लेषण तो इन्हीं का अध्ययन है।

परिवर्तन-

difference static and dynamic analysis-स्थैतिक विश्लेषण विश्राम प्राप्त हो जाने वाली शक्तियों का अध्ययन है जबकि प्रवैगिक आर्थिक सिद्धांत परिवर्तनीय शक्तियों का अध्ययन है।

अवस्था-

difference static and dynamic analysis-स्थैतिक अर्थशास्त्र में हम केवल संस्थिति की अंतिम अवस्था का विश्लेषण करते हैं जबकि प्रायोगिक अर्थशास्त्र के अंदर हम यह देखते हैं कि किस प्रकार विभिन्न समयावधियों में विभिन्न चरणों में परिवर्तन के बाद इस स्थिति की प्राप्ति हुई है।

विश्लेषण का संबंध-

बामोल के अनुसार स्थैतिक विश्लेषण का संबंध केवल वर्तमान से है प्रवैगिक विश्लेषण का संबंध भूत एवं भविष्य काल से है।

प्रमुख क्षेत्र-

स्थैतिक विश्लेषण का प्रमुख क्षेत्र सीमांत विश्लेषण है, जबकि प्रवैगिक विश्लेषण का प्रमुख क्षेत्र विकास मॉडल है

अध्ययन में-

difference static and dynamic analysis-स्थैतिक आर्थिक विश्लेषण सरल विश्लेषण है क्योंकि इसके अध्ययन में गणित की सहायता नहीं ली जाती रहेगी प्रवैगिक विश्लेषण एक जटिल विश्लेषण है क्योंकि इसमें गणित का प्रयोग किया जाता है।

इसे भी पढ़ें-

स्थैतिक, विश्लेषण/Static and Dynamics  

मांग फलन क्या है? (What is Demand Function

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