दक्कन का पठार | The Deccan Plateau

 

आज के अध्याय में हम लोग दक्कन के पठार के बारे में पढ़ेंगे प्रायद्वीपीय पठार के अंतर्गत केंद्रीय उच्च भूमि,पूर्वी पठार, उत्तरी पूर्वी पठार को हम पढ़ चुके हैं अब हम दक्कन के पठार के बारे में जानकारी लेंगे इस लेख में हम दक्कन के पठार के बारे में पढ़ेंगे पिछले लेख में आप देख सकते हैं कि हमने प्रायद्वीपीय पठार के अंतर्गत केंद्रीय उच्च भूमि पूर्वी पठार उत्तर पूर्वी पठार और दक्कन के पठार को कवर किया हुआ है।

The Deccan Plateau दक्कन के पठार के अंतर्गत हम लोग तीन टॉपिक को कवर करेंगे दक्कन ट्रंप, कर्नाटक का पठार, आंध्र का पठार इन तीनों टॉपिक के बारे में हम जानकारी लेंगे उसके बाद हम अगले आर्टिकल में दक्षिणी पर्वतीय क्षेत्र के बारे में पढ़ेंगे।

प्रायद्वीपीय पठार | peninsular plateau

दक्कन का पठार (The Deccan Plateau)

The Deccan Plateau इस पठार का विस्तार ताप्ती नदी के दक्षिण में त्रिभुजाकार रूप में है इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्र को सम्मिलित किया जाता है

  1. दक्कन ट्रैप
  2. कर्नाटक का पठार
  3. आंध्र का पठार

 

दक्कन ट्रैप 

महाराष्ट्र में विशाल चट्टान से निर्मित संरचना होने के कारण यहां काली मिट्टी का विकास हुआ है इसलिए यह क्षेत्र कपास के उत्पादन की दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इसका विस्तार 16° उत्तरी अक्षांश के उत्तर से लेकर उत्तर पूर्व में नागपुर तक है।

इसी पठारी क्षेत्र से गोदावरी नदी प्रवाहित होती है माला जनता बालाघाट और हरिश्चंद्र इत्यादि पहाड़ियों का विस्तार भी इसी पठारी क्षेत्र में है।

कर्नाटक का पठार

 कर्नाटक के पठारी क्षेत्र में पश्चिमी घाट से संलग्न पर्वतीय एवं पठारी क्षेत्र को मलनाथ कहते हैं बाबा बूदान यहां का सबसे ऊंचा पर्वतीय क्षेत्र है तथा मूल्लयानगिरी (मुलनगिरी) की सबसे ऊंची चोटी है।

मलनाड से संलग्न पूर्व में अपेक्षाकृत कम ऊंचे पठारी क्षेत्र को मैदान कहते हैं जिसमें औसत से अधिक ऊंचे मैदानी क्षेत्र को बंगलुर का पठार एवं मैसूर का पठार के नाम से जाना जाता है।

 कर्नाटक में धारवाड़ संरचना का विकास होने के कारण पठारी क्षेत्र धात्विक खनिज संसाधनों के भंडार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है यहां लौह अयस्क का सर्वाधिक भंडार है जिसके लिए बाबा बूदान पर्वती क्षेत्र अधिक महत्वपूर्ण है।

मैसूर के पठार में ही कावेरी नदी का अपवाह क्षेत्र है कृष्णा कावेरी तुंगभद्रा शरारती एवं भीमा यहां की प्रमुख नदियां हैं।

शरारती नदी पर भारत का महत्वपूर्ण जलप्रपात है जिसे जोग या गरसोप्पा जलप्रपात कहते हैं इसे महात्मा गांधी जलप्रपात भी कहते हैं कुंचीकल जलप्रपात भारत का सबसे ऊंचा जलप्रपात है (455 मीटर) जो कि शिमोगा जिले कर्नाटक में वाराही नदी पर है।

आंध्र का पठार

 आंध्र के पठार के अंतर्गत रायलसीमा का पठार तथा तेलंगाना के पठार को शामिल किया जाता है।

 कृष्णा नदी बेसिन के दक्षिण के पठारी क्षेत्र को रायलसीमा का पठार कहते हैं जहां वेलीकोंडा, पालकुंडा और नन्नामलाई पर्वत का विस्तार है जबकि कृष्णा नदी बेसिन के उत्तर में स्थित पठारी क्षेत्र को तेलंगाना का पठार कहते हैं।

 तेलंगाना के पठार का ऊपरी हिस्सा पठारी है तथा दक्षिणी हिस्सा उपजाऊ मैदान है।

 कृष्णा और गोदावरी नदी बेसिन के मध्य में कोल्लेरू झील अवस्थित है जो एशिया की सबसे बड़ी दलदली भूमि है।

 

दक्षिणी पर्वतीय क्षेत्र

Southern Mountainous Region दक्षिणी पर्वतीय क्षेत्र के अंतर्गत केरल एवं तमिलनाडु की सीमा पर स्थित नीलगिरी अन्ना अन्नामलाई कार्डमम तथा तमिलनाडु में स्थित पालनी पहाड़ियाँ आदि आती हैं।

Southern Mountainous Region डोडाबेटा नीलगिरी पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है प्रसिद्ध पर्यटन स्थल उडगमंडलम या ऊटी नीलगिरी में ही अवस्थित है।

 अन्नामलाई पर्वत की चोटी अनाईमुडी (2695 मीटर) प्रायद्वीपीय पठार एवं दक्षिण भारत की सबसे ऊंची चोटी है। जबकि कार्डमम प्रायद्वीपीय भारत का दक्षिणतम पर्वती क्षेत्र है एवं यह केरल व तमिलनाडु की सीमाओं पर स्थित है।

Southern Mountainous Region नीलगिरी और अन्नामलाई के बीच पालघाट दर्रा स्थित है जो पलक्कम को कोयंबटूर से जोड़ता है जबकि अन्नामलाई और कार्डमम के बीच सेनकोटा दर्रा स्थित है जो त्रिवेंद्रमपुरम को मदुरै से जोड़ता है।

 प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोडाईकनाल पलानी पहाड़ियों में ही स्थित है केरल के नीलगिरि पर्वतीय क्षेत्र में स्थित शांतघाटी सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है।

मुख्यत: ये दीप समुद्र में जल मग्न पर्वतों के भाग हैं कुछ जल दीपों की उत्पत्ति ज्वालामुखी क्रिया से भी जुड़ी है 10°  उत्तरी अक्षांश (10° चैनल) अंडमान दीप को निकोबार दीप से अलग करता है अंडमान निम्नलिखित दीपों का समूह है उत्तरी अंडमान 

मध्य अंडमान 

दक्षिणी अंडमान 

लिटिल अंडमान

अंडमान एवं निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लेयर है जो कि दक्षिणी अंडमान दीप पर स्थित है। यहीं पर प्रसिद्ध सेल्यूलर जेल है।

 कोको स्टेट अंडमान उत्तरी अंडमान के उत्तर में स्थित है जो अंडमान को म्यानमार के कोको दीप समूह से अलग करती है।

 दक्षिणी अंडमान एवं लिटिल अंडमान के बीच डंकन पास पाया जाता है।

 मध्य अंडमान के पूर्व में बैरन द्वीप स्थित है जो भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है जबकि उत्तरी अंडमान के पूर्व में स्थित नारकोंडम एक सुषुप्त ज्वालामुखी द्वीप है।

 निकोबार भी कई द्वीपों का समूह है जैसे

 कार निकोबार 

लिटिल निकोबार 

ग्रेट निकोबार 

6 डिग्री चैनल ग्रेट निकोबार को सुमात्रा से अलग करता है। ग्रेट निकोबार द्वीप भौगोलिक रूप से इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप के सबसे निकट अवस्थित भारतीय क्षेत्र है।

भारत का दक्षिणतम बिंदु इंदिरा पॉइंट है जो ग्रेट निकोबार के दक्षिण में स्थित है (2004 की सुनामी के कारण यह जल में डूब गया)।

 इंदिरा पॉइंट का अन्य नाम पिगमालियन पॉइंट है।

 अंडमान एवं निकोबार दीप समूह की सर्वोच्च चोटी सैंडल पिक है जो उत्तरी अंडमान में स्थित है तथा माउंट थूलियर अंडमान एवं निकोबार की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी है।

 जो ग्रेट निकोबार द्वीप पर स्थित है।

 यहां जारवा शैम्पेन सेंटिनलीज आदि प्रमुख जनजातियों के लोग आज भी अपने आदिम स्थिति में जीवन यापन करते हैं 2014 के 16वीं लोकसभा चुनाव में पहली बार शैम्पेन जनजाति ने मतदान किया।

महत्वपूर्ण तथ्य

कोलंबस और वास्कोडिगामा जब दुनिया की खोज पर निकले थे तो उन्होंने कुछ नक्शे फॉलो किए थे उस नक्शे को किसने बनाया था?

अरब स्कॉलर भूगोलवक्ता मोहम्मद अल इदरीसी ने बनाए थे इनकी एक खास बात यह ठीक की यह नक्शे को उल्टा बनाया करते थे नीचे नार्थ साउथ लिखते थे लोग नक्शे को उल्टा रखकर के पढ़ा करते थे।

 

पूर्वी पठार 

इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है

 छोटा नागपुर का पठार

 छत्तीसगढ़ बेसिन या महानदी बेसिन

 दंडकारण्य का पठार 

छोटा नागपुर का पठार 

इसका विस्तार मुख्यत: झारखंड में है इसके अलावा दक्षिणी बिहार उत्तरी छत्तीसगढ़ पश्चिमी बंगाल का पुरुलिया जिला और उड़ीसा का उत्तरी क्षेत्र भी छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में आते हैं।

 इस पठार के उत्तर पूर्व में राजमहल पहाड़ी उत्तर में हजारीबाग का पठार तथा दक्षिण में रांची का पठार इन तीनों संरचनाओं को संयुक्त रूप से छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में शामिल किया जाता है।

दामोदर नदी रांची के पठार को हजारीबाग के पठार से अलग करती है यह छोटा नागपुर के पठार की सबसे बड़ी नदी है।

दामोदर नदी बेसिन कोयला भंडार की दृष्टि से भारत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।

 हजारीबाग पठार की चोटी ‘पारसनाथ हिल’ छोटा नागपुर पठार की सबसे ऊंची चोटी है यह जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।

रांची पठार से निकलने वाली स्वर्ण रेखा नदी छोटा नागपुर की दूसरी सबसे बड़ी नदी है रांची के समीप इस नदी पर हुंडरू जलप्रपात है।

छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टान से निर्मित उच्च स्थलाकृति या द्वीप रूपी स्थलाकृति को पाट–भूमि कहते हैं भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से पाट क्षेत्र एक उत्थित भूखंड का उदाहरण है।

छत्तीसगढ़ बेसिन महानदी बेसिन छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा राज्य में है जिसका निर्माण अवतलन या धॅंसाव की प्रक्रिया द्वारा हुआ है।

यहां पर महानदी तथा उसकी सहायक नदियां विश्वनाथ हसदो मांड ईब आदि प्रवाहित होती हैं।

छत्तीसगढ़ बेसिन में गोंडवाना क्रम की संरचना पाई जाती है जिसके कारण ही यहां कोयला भंडार की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है।

 

दंडकारण्य का पठार

इसका विस्तार उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना तक है अतः यह भारत के मध्यवर्ती भाग में स्थित है।

 यह अत्यंत ही उबड़–खाबड़ एवं अनुपजाऊ क्षेत्र है लेकिन खनिज संसाधन के भंडार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

 गोदावरी की सहायक नदी इंद्रावती का उद्गम इसी क्षेत्र से होता है भारत में ‘टिन धातु’ दंडकारण्य पठार में स्थित बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है।

उत्तर पूर्वी पठार

मेघालय का पठार

 उत्पत्ति एवं संरचना की दृष्टि से मेघालय का पठार प्रायद्वीपीय पठार (छोटा नागपुर का पठार) का ही पूर्वी विस्तार है जो राजमहल गारो गैप अथवा मालदा गैप के द्वारा अलग हुआ है।

 इस पठार में पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमशः गारो खासी जयंतिया तथा खीर आदि पहाड़ियां स्थित है जो प्राचीन चट्टानों से बनी है गारो खासी जयंतिया इस पठार में निवास करने वाली प्रमुख जनजातियां हैं।

 

खांसी पर्वतीय क्षेत्र का कीप रूपी स्वरूप में अवस्थित होने के कारण ही यहां औसत से अधिक वर्षा होती है यही कारण है कि यहां खासी पहाड़ी के दक्षिण में स्थित माॅसिनराम एवं चेरापूंजी विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गिने जाते हैं।

 यहां धारवाड़ संरचना से निर्मित शिलांग रेंज सबसे ऊंचा पर्वतीय क्षेत्र है इसलिए इसे सिलांग के पठार के नाम से जाना जाता है इस क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी नाॅकरेक (मेघालय में अवस्थित) है।

औसत से अधिक वर्षा होने के कारण ही यहां लेटराइट मिट्टी तथा सदाबहार वनों का विकास हुआ है।

 

मालदा गैप या राजमहल गारो गैप 

इसकी उत्पत्ति प्रायद्वीपीय भारत के संचालन के दौरान धॅंसाव की प्रक्रिया के कारण हुई है।

 इसके द्वारा छोटा नागपुर का राजमहल पर्वत मेघालय के गारो पर्वत से अलग होता है इसलिए इसे राजमहल गैप कहते हैं जबकि पश्चिम बंगाल में इसे मालदा गैप कहते हैं।

गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा लाए गए अवसादों का मालदा राजमहल गैप में निक्षेपण से डेल्टाई मैदान का निर्माण हुआ।

 इस डेल्टाई मैदान में पीट मृदा की उपलब्धता के कारण ही ‘मैंग्रोव वनस्पति’ का विकास हुआ इस क्षेत्र में पाया जाने वाला सुंदरबन भारत के सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है।

 

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