पूर्वी पठार | Eastern Plateau

पूर्वी पठार के क्षेत्र eastern plateau of area 

इसके अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है

  1.  छोटा नागपुर का पठार
  2.  छत्तीसगढ़ बेसिन या महानदी बेसिन

दंडकारण्य का पठार

छोटा नागपुर का पठार 

Eastern Plateau इसका विस्तार मुख्यत: झारखंड में है इसके अलावा दक्षिणी बिहार उत्तरी छत्तीसगढ़ पश्चिमी बंगाल का पुरुलिया जिला और उड़ीसा का उत्तरी क्षेत्र भी छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में आते हैं।

Eastern Plateau इस पठार के उत्तर पूर्व में राजमहल पहाड़ी उत्तर में हजारीबाग का पठार तथा दक्षिण में रांची का पठार इन तीनों संरचनाओं को संयुक्त रूप से छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में शामिल किया जाता है।

दामोदर नदी रांची के पठार को हजारीबाग के पठार से अलग करती है यह छोटा नागपुर के पठार की सबसे बड़ी नदी है।

दामोदर नदी बेसिन कोयला भंडार की दृष्टि से भारत का सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।

 हजारीबाग पठार की चोटी ‘पारसनाथ हिल’ छोटा नागपुर पठार की सबसे ऊंची चोटी है यह जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।

Eastern Plateau रांची पठार से निकलने वाली स्वर्ण रेखा नदी छोटा नागपुर की दूसरी सबसे बड़ी नदी है रांची के समीप इस नदी पर हुंडरू जलप्रपात है।

Eastern Plateau छोटा नागपुर पठार क्षेत्र में ग्रेनाइट चट्टान से निर्मित उच्च स्थलाकृति या द्वीप रूपी स्थलाकृति को पाट–भूमि कहते हैं भूगर्भिक संरचना की दृष्टि से पाट क्षेत्र एक उत्थित भूखंड का उदाहरण है।

छत्तीसगढ़ बेसिन महानदी बेसिन

छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा राज्य में है जिसका निर्माण अवतलन या धॅंसाव की प्रक्रिया द्वारा हुआ है।

यहां पर महानदी तथा उसकी सहायक नदियां विश्वनाथ हसदो मांड ईब आदि प्रवाहित होती हैं।

छत्तीसगढ़ बेसिन में गोंडवाना क्रम की संरचना पाई जाती है जिसके कारण ही यहां कोयला भंडार की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है।

दंडकारण्य का पठार

इसका विस्तार उड़ीसा, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना तक है अतः यह भारत के मध्यवर्ती भाग में स्थित है।

Eastern Plateau यह अत्यंत ही उबड़–खाबड़ एवं अनुपजाऊ क्षेत्र है लेकिन खनिज संसाधन के भंडार की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

 गोदावरी की सहायक नदी इंद्रावती का उद्गम इसी क्षेत्र से होता है भारत में ‘टिन धातु’ दंडकारण्य पठार में स्थित बस्तर क्षेत्र में पाई जाती है।

उत्तर पूर्वी पठार

मेघालय का पठार

 उत्पत्ति एवं संरचना की दृष्टि से मेघालय का पठार प्रायद्वीपीय पठार (छोटा नागपुर का पठार) का ही पूर्वी विस्तार है जो राजमहल गारो गैप अथवा मालदा गैप के द्वारा अलग हुआ है।

Eastern Plateau इस पठार में पश्चिम से पूर्व की ओर क्रमशः गारो खासी जयंतिया तथा खीर आदि पहाड़ियां स्थित है जो प्राचीन चट्टानों से बनी है गारो खासी जयंतिया इस पठार में निवास करने वाली प्रमुख जनजातियां हैं।

खांसी पर्वतीय क्षेत्र का कीप रूपी स्वरूप में अवस्थित होने के कारण ही यहां औसत से अधिक वर्षा होती है यही कारण है कि यहां खासी पहाड़ी के दक्षिण में स्थित माॅसिनराम एवं चेरापूंजी विश्व में सर्वाधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में गिने जाते हैं।

 यहां धारवाड़ संरचना से निर्मित शिलांग रेंज सबसे ऊंचा पर्वतीय क्षेत्र है इसलिए इसे सिलांग के पठार के नाम से जाना जाता है इस क्षेत्र की सबसे ऊंची चोटी नाॅकरेक (मेघालय में अवस्थित) है।

औसत से अधिक वर्षा होने के कारण ही यहां लेटराइट मिट्टी तथा सदाबहार वनों का विकास हुआ

मालदा गैप या राजमहल गारो गैप 

इसकी उत्पत्ति प्रायद्वीपीय भारत के संचालन के दौरान धॅंसाव की प्रक्रिया के कारण हुई है।

 इसके द्वारा छोटा नागपुर का राजमहल पर्वत मेघालय के गारो पर्वत से अलग होता है इसलिए इसे राजमहल गैप कहते हैं जबकि पश्चिम बंगाल में इसे मालदा गैप कहते हैं।

गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों के द्वारा लाए गए अवसादों का मालदा राजमहल गैप में निक्षेपण से डेल्टाई मैदान का निर्माण हुआ।

 इस डेल्टाई मैदान में पीट मृदा की उपलब्धता के कारण ही ‘मैंग्रोव वनस्पति’ का विकास हुआ इस क्षेत्र में पाया जाने वाला सुंदरबन भारत के सर्वाधिक जैव विविधता वाले क्षेत्रों में से एक है।

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वायुमंडलीय दाब atmospheric pressure

प्रायद्वीपीय पठार 

भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक अनियमित त्रिभुजाकार आकृति वाला भूखंड है जिसका विस्तार उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वतमाला व दिल्ली पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों पश्चिम में गिर पहाड़ियों दक्षिण में इलायची कार्डमम पहाड़ियों तथा उत्तर पूर्व में शीलांग एवं कार्बी–ऐंगलोंग पठार तक है इसकी औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर है

यह गोंडवाना लैंड के टूटने एवं उसके उत्तर दिशा में प्रवाह के कारण बना था अतः यह प्राचीनतम भूभाग पंजिया का एक हिस्सा है जो पुराने क्रिस्टलीय आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है

प्रायद्वीपीय पठार का ढाल उत्तर और पूर्व की ओर है जो सोन चंबल और दामोदर नदियों के प्रवाह से स्पष्ट है दक्षिणी भाग में इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है जो गोदावरी, कृष्णा, महानदी, कावेरी नदियों के प्रवाह से स्पष्ट है।

सामान्यतः प्रायद्वीप की ऊंचाई पश्चिम से पूरब की ओर कम होती चली जाती है यही कारण है कि प्रायद्वीपीय पठार की अधिकांश नदियों का बहाव पश्चिम से पूरब की ओर होता है

प्रायद्वीपीय नदियों में नर्मदा एवं ताप्ती नदियां अपवाद हैं क्योंकि इनके बहने की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर होती है ऐसा भ्रंश घाटी से होकर बहने के कारण है।

 प्रायद्वीपीय पठार को पठारों का पठार कहते हैं क्योंकि यह अनेक पठारों से मिलकर बना है–

  1.  केंद्रीय उच्च भूमि
  2.  पूर्वी पठार
  3.  उत्तर पूर्वी पठार
  4.  दक्कन का पठार

 

केंद्रीय उच्च भूमि (The Central High lands)

केंद्रीय उच्च भूमि के अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल किया गया है जैसे –

  1. अरावली पर्वत श्रेणी 
  2. मेवाड़ का पठार
  3. मालवा का पठार 
  4. बुंदेलखंड का पठार
  5.  विंध्य श्रेणी
  6.  सतपुरा श्रेणी

 

अरावली पर्वत श्रेणी

 अरावली पर्वत का विस्तार उत्तर पूर्व में दिल्ली–रिज से लेकर दक्षिण पश्चिम में गुजरात के पालनपुर तक लगभग 800 किलोमीटर है।

 अरावली संरचना पश्चिमी भारत का मुख्य जल विभाजक है जो राजस्थान मैदान के अपवाह क्षेत्र को गंगा के मैदान के अपवाह क्षेत्र से अलग करती है।

 यह प्राचीनतम मोड दार अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है जो राजस्थान बांगर को केंद्रीय उच्च भूमि से अलग करने वाली संरचना है इसकी उत्पत्ति प्री–कैंब्रियन काल में हुई थी 

अरावली की अनुमानित आयु 570 मिलियन वर्ष मानी जाती है।

लूनी नदी इस पर्वत से निकलने वाली राजस्थान मैदान की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी है जो राजस्थान बांगर और थार मरुस्थल से होते हुए गुजरात के कच्छ के रण में विलीन हो जाती है इसलिए यह एक अंत: स्थलीय अपवाह तंत्र का उदाहरण है।

अरावली से निकलने वाली सुकरी और जवाई नदियां लूनी नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियां हैं

अरावली पर्वतमाला पश्चिमी भारत की एक मुख्य जलवायु विभाजक भी है जो पूरब के अपेक्षाकृत अधिक वर्षा वाले क्षेत्र को पश्चिम के अर्ध शुष्क और शुष्क प्रदेश से अलग करती है।

 उत्तर पश्चिम भारत में यह क्षेत्र खनिज संसाधनों जैसे तांबा सीसा जस्ता अभ्रक तथा चूना पत्थर के भंडार की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। 

अरावली पर्वत का सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर है जो आबू पहाड़ी पर स्थित है इसी आबू पहाड़ी में जैनियों का प्रसिद्ध धर्म स्थल दिलवाड़ा जैन मंदिर स्थित है जबकि अन्य शिखर कुंभलगढ़ में है।

मेवाड़ का पठार

 मेवाड़ के पठार का विस्तार राजस्थान व मध्यप्रदेश में है मेवाड़ पठार अरावली पर्वत को मालवा के पठार से अलग करने वाली संरचना है।

 मेवाड़ का पठार अरावली पर्वत से निकलने वाली बनास नदी के अपवाह क्षेत्र में आता है बनास नदी चंबल नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है।

मालवा का पठार 

मध्य प्रदेश में बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना को मालवा का पठार कहते हैं मालवा पठार को राजस्थान में हाड़ौती का पठार कहते हैं इसका विस्तार दक्षिण में विंध्यन संरचना उत्तर में ग्वालियर पहाड़ी क्षेत्र पूर्व में बुंदेलखंड बघेलखंड तथा पश्चिम में मेवाड़ पठारी क्षेत्र तक है।

 यहाँ बेसाल्ट चट्टान में अपक्षरण के कारण काली मृदा का विकास हुआ है इसलिए मालवा पठारी क्षेत्र कपास की कृषि के लिए उपयोगी है।

 चंबल नर्मदा और ताप्ती यहां की प्रमुख नदियां हैं चंबल नदी घाटी भारत में अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है जिसे बीहड़ या उत्खात भूमि कहते हैं 

बुंदेलखंड का पठार 

इसका विस्तार ग्वालियर के पठार और विंध्याचल श्रेणी के बीच मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में है

इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के 7 जिले (जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा, महोबा) तथा मध्य प्रदेश के 8 जिले (दतिया, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, विदिशा) आते हैं।

बुंदेलखंड के पठार में यमुना की सहायक चंबल नदी के द्वारा बने महाखड्डों को उत्खात भूमि का प्रदेश कहते हैं।

 यहां की ग्रेनाइट व नीस चट्टानी संरचना में अपक्षय व अपरदन की क्रिया होने के कारण लाल मृदा का विकास हुआ है

 बुंदेलखंड क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र होने के कारण केंद्रीय उच्च भूमि का आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा क्षेत्र है मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बघेलखंड का पठार केंद्रीय उच्च भूमि को पूर्वी पठार से अलग करता है।

विंध्यन श्रेणी 

इसका विस्तार गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार तथा छत्तीसगढ़ तक है। इसे गुजरात में जोबट हिल और बिहार में कैमूर हिल कहते हैं।

 विंध्यन श्रेणी के दक्षिण में नर्मदा नदी घाटी है जो विंध्यन पर्वत को सतपुड़ा पर्वत से अलग करती है। 

विंध्य श्रेणी कई पहाड़ियों की एक पर्वत श्रेणी है जिसमें विंध्याचल कैमूर तथा पारसनाथ की पहाड़ियां पाई जाती हैं

लाल बलुआ पत्थर और चूना पत्थर के चट्टान से निर्मित इस संरचना में धात्विक खनिज संसाधनों का अभाव है परंतु भवन निर्माण के पदार्थों के भंडार की दृष्टि से इसका आर्थिक महत्व सबसे अधिक है।

यह पर्वत श्रेणी उत्तरी भारत और प्रायद्वीपीय भारत की मुख्य जल विभाजक भी है क्योंकि यह गंगा नदी के अपवाह क्षेत्र को प्रायद्वीपीय भारत के अपवाह क्षेत्र से अलग करती है।

सतपुड़ा श्रेणी

 यह भारत के मध्य भाग में स्थित है जिसका विस्तार गुजरात से होते हुए मध्य प्रदेश महाराष्ट्र की सीमा से लेकर छत्तीसगढ़ एवं छोटा नागपुर के पठार तक है।

यह पश्चिम से पूर्व राजपीपला की पहाड़ी महादेव पहाड़ी एवं मैकल श्रेणी के रूप में फैली हुई है इस पर्वत श्रेणी की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ (1350 मीटर) है जो महादेव पर्वत पर स्थित है मैकाल श्रेणी की सर्वोच्च चोटी अमरकंटक है यहां से नर्मदा वह सोन नदी का उद्गम हुआ है।

 यह एक ब्लॉक पर्वत है जिसका निर्माण मुख्यता ग्रेनाइट एवं विशाल चट्टानों से हुआ है यह पर्वत श्रेणी नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच जल विभाजक का कार्य करता है।

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