प्रायद्वीपीय पठार | peninsular plateau

प्रायद्वीपीय पठार | peninsular plateau

peninsular plateau भारत का प्रायद्वीपीय पठार एक अनियमित त्रिभुजाकार आकृति वाला भूखंड है जिसका विस्तार उत्तर पश्चिम में अरावली पर्वतमाला व दिल्ली पूर्व में राजमहल की पहाड़ियों पश्चिम में गिर पहाड़ियों दक्षिण में इलायची कार्डमम पहाड़ियों तथा उत्तर पूर्व में शीलांग एवं कार्बी–ऐंगलोंग पठार तक है इसकी औसत ऊंचाई 600 से 900 मीटर है

यह गोंडवाना लैंड के टूटने एवं उसके उत्तर दिशा में प्रवाह के कारण बना था अतः यह प्राचीनतम भूभाग पंजिया का एक हिस्सा है जो पुराने क्रिस्टलीय आग्नेय तथा रूपांतरित शैलों से बना है

peninsular plateau प्रायद्वीपीय पठार का ढाल उत्तर और पूर्व की ओर है जो सोन चंबल और दामोदर नदियों के प्रवाह से स्पष्ट है दक्षिणी भाग में इसका ढाल पश्चिम से पूर्व की ओर है जो गोदावरी, कृष्णा, महानदी, कावेरी नदियों के प्रवाह से स्पष्ट है।

सामान्यतः प्रायद्वीप की ऊंचाई पश्चिम से पूरब की ओर कम होती चली जाती है यही कारण है कि peninsular plateau प्रायद्वीपीय पठार की अधिकांश नदियों का बहाव पश्चिम से पूरब की ओर होता है

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प्रायद्वीपीय नदियों में नर्मदा एवं ताप्ती नदियां अपवाद हैं क्योंकि इनके बहने की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर होती है ऐसा भ्रंश घाटी से होकर बहने के कारण है।

peninsular plateau प्रायद्वीपीय पठार को पठारों का पठार कहते हैं क्योंकि यह अनेक पठारों से मिलकर बना है–

  1.  केंद्रीय उच्च भूमि
  2.  पूर्वी पठार
  3.  उत्तर पूर्वी पठार
  4.  दक्कन का पठार

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केंद्रीय उच्च भूमि (The Central High lands)

केंद्रीय उच्च भूमि के अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों को शामिल किया गया है जैसे 

अरावली पर्वत श्रेणी 

मेवाड़ का पठार

मालवा का पठार 

बुंदेलखंड का पठार

 विंध्य श्रेणी

 सतपुड़ा श्रेणी

अरावली पर्वत श्रेणी

 अरावली पर्वत का विस्तार उत्तर पूर्व में दिल्ली–रिज से लेकर दक्षिण पश्चिम में गुजरात के पालनपुर तक लगभग 800 किलोमीटर है।

 अरावली संरचना पश्चिमी भारत का मुख्य जल विभाजक है जो राजस्थान मैदान के अपवाह क्षेत्र को गंगा के मैदान के अपवाह क्षेत्र से अलग करती है।

 यह प्राचीनतम मोड दार अवशिष्ट पर्वत का उदाहरण है जो राजस्थान बांगर को केंद्रीय उच्च भूमि से अलग करने वाली संरचना है इसकी उत्पत्ति प्री–कैंब्रियन काल में हुई थी 

 

अरावली की अनुमानित आयु 570 मिलियन वर्ष मानी जाती है।

लूनी नदी इस पर्वत से निकलने वाली राजस्थान मैदान की सर्वाधिक महत्वपूर्ण नदी है जो राजस्थान बांगर और थार मरुस्थल से होते हुए गुजरात के कच्छ के रण में विलीन हो जाती है इसलिए यह एक अंत: स्थलीय अपवाह तंत्र का उदाहरण है।

अरावली से निकलने वाली सुकरी और जवाई नदियां लूनी नदी की महत्वपूर्ण सहायक नदियां हैं

अरावली पर्वतमाला पश्चिमी भारत की एक मुख्य जलवायु विभाजक भी है जो पूरब के अपेक्षाकृत अधिक वर्षा वाले क्षेत्र को पश्चिम के अर्ध शुष्क और शुष्क प्रदेश से अलग करती है।

 उत्तर पश्चिम भारत में यह क्षेत्र खनिज संसाधनों जैसे तांबा सीसा जस्ता अभ्रक तथा चूना पत्थर के भंडार की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण है। 

अरावली पर्वत का सर्वोच्च शिखर गुरु शिखर है जो आबू पहाड़ी पर स्थित है इसी आबू पहाड़ी में जैनियों का प्रसिद्ध धर्म स्थल दिलवाड़ा जैन मंदिर स्थित है जबकि अन्य शिखर कुंभलगढ़ में है।

 

मेवाड़ का पठार

 मेवाड़ के पठार का विस्तार राजस्थान व मध्यप्रदेश में है मेवाड़ पठार अरावली पर्वत को मालवा के पठार से अलग करने वाली संरचना है।

 मेवाड़ का पठार अरावली पर्वत से निकलने वाली बनास नदी के अपवाह क्षेत्र में आता है बनास नदी चंबल नदी की एक महत्वपूर्ण सहायक नदी है।

 

मालवा का पठार

 

 मध्य प्रदेश में बेसाल्ट चट्टान से निर्मित संरचना को मालवा का पठार कहते हैं मालवा पठार को राजस्थान में हाड़ौती का पठार कहते हैं इसका विस्तार दक्षिण में विंध्यन संरचना उत्तर में ग्वालियर पहाड़ी क्षेत्र पूर्व में बुंदेलखंड बघेलखंड तथा पश्चिम में मेवाड़ पठारी क्षेत्र तक है।

 यहाँ बेसाल्ट चट्टान में अपक्षरण के कारण काली मृदा का विकास हुआ है इसलिए मालवा पठारी क्षेत्र कपास की कृषि के लिए उपयोगी है।

 चंबल नर्मदा और ताप्ती यहां की प्रमुख नदियां हैं चंबल नदी घाटी भारत में अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है जिसे बीहड़ या उत्खात भूमि कहते हैं 

 

बुंदेलखंड का पठार 

इसका विस्तार ग्वालियर के पठार और विंध्याचल श्रेणी के बीच मध्य प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश राज्यों में है

 

इसके अंतर्गत उत्तर प्रदेश के 7 जिले (जालौन, झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, हमीरपुर, बांदा, महोबा) तथा मध्य प्रदेश के 8 जिले (दतिया, निवाड़ी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, सागर, विदिशा) आते हैं।

 

बुंदेलखंड के पठार में यमुना की सहायक चंबल नदी के द्वारा बने महाखड्डों को उत्खात भूमि का प्रदेश कहते हैं।

 यहां की ग्रेनाइट व नीस चट्टानी संरचना में अपक्षय व अपरदन की क्रिया होने के कारण लाल मृदा का विकास हुआ है

 बुंदेलखंड क्षेत्र सूखा प्रभावित क्षेत्र होने के कारण केंद्रीय उच्च भूमि का आर्थिक दृष्टि से एक पिछड़ा क्षेत्र है मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित बघेलखंड का पठार केंद्रीय उच्च भूमि को पूर्वी पठार से अलग करता है।

 

विंध्यन श्रेणी 

इसका विस्तार गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश उत्तर प्रदेश बिहार तथा छत्तीसगढ़ तक है। इसे गुजरात में जोबट हिल और बिहार में कैमूर हिल कहते हैं।

 विंध्यन श्रेणी के दक्षिण में नर्मदा नदी घाटी है जो विंध्यन पर्वत को सतपुड़ा पर्वत से अलग करती है। 

विंध्य श्रेणी कई पहाड़ियों की एक पर्वत श्रेणी है जिसमें विंध्याचल कैमूर तथा पारसनाथ की पहाड़ियां पाई जाती हैं

लाल बलुआ पत्थर और चूना पत्थर के चट्टान से निर्मित इस संरचना में धात्विक खनिज संसाधनों का अभाव है परंतु भवन निर्माण के पदार्थों के भंडार की दृष्टि से इसका आर्थिक महत्व सबसे अधिक है।

यह पर्वत श्रेणी उत्तरी भारत और प्रायद्वीपीय भारत की मुख्य जल विभाजक भी है क्योंकि यह गंगा नदी के अपवाह क्षेत्र को प्रायद्वीपीय भारत के अपवाह क्षेत्र से अलग करती है।

 

सतपुड़ा श्रेणी

 यह भारत के मध्य भाग में स्थित है जिसका विस्तार गुजरात से होते हुए मध्य प्रदेश महाराष्ट्र की सीमा से लेकर छत्तीसगढ़ एवं छोटा नागपुर के पठार तक है।

यह पश्चिम से पूर्व राजपीपला की पहाड़ी महादेव पहाड़ी एवं मैकल श्रेणी के रूप में फैली हुई है इस पर्वत श्रेणी की सर्वोच्च चोटी धूपगढ़ (1350 मीटर) है जो महादेव पर्वत पर स्थित है मैकाल श्रेणी की सर्वोच्च चोटी अमरकंटक है यहां से नर्मदा वह सोन नदी का उद्गम हुआ है।

 यह एक ब्लॉक पर्वत है जिसका निर्माण मुख्यता ग्रेनाइट एवं विशाल चट्टानों से हुआ है यह पर्वत श्रेणी नर्मदा और ताप्ती नदियों के बीच जल विभाजक का कार्य करता है।

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