wind and type of wind | पवन,पवन के प्रकार

wind and type of wind | पवन,पवन के प्रकार

 

wind and type of wind वायुदाब में क्षैतिज विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है क्षैतिज  रूप से गतिशील इस हवा को पवन कहते हैं।

wind and type of wind यह वायुदाब की विषमताओं को संतुलित करने की दिशा में प्रकृति का प्रयास है लगभग ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिमान हवा को वायु धारा कहते हैं पवन और वायु धाराएं दोनों मिलकर एक चक्रीय प्रक्रिया को पूरा करते हैं। इस संदर्भ में हेडली सेल का उदाहरण लिया जा सकता है।

wind and type of wind  पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में परिधि के अंतर्गत घूर्णन गति में भिन्नता के कारण पवन दाब प्रवणता द्वारा निर्देशित दिशा में समदाब रेखा के समकोण पर नहीं बहता बल्कि अपनी मूल दिशा से विक्षेपित हो जाता है ऐसा काॅरिआलिस बल के प्रभाव के कारण होता है वायु में गति बढ़ने के साथ-साथ इस बल की मात्रा में भी वृद्धि हो जाती है।

 ध्रुवों की ओर इसकी मात्रा में वृद्धि होती है काॅरिआलिस बल के प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्ध के पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्ध के पवन अपनी बायीं और विक्षेपित हो जाते हैं क्योंकि इस विशेषता को फेरल नामक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था अतः इसे फेरल का नियम कहते हैं।

पवन के प्रकार

wind and type of wind 

विशेषताओं के आधार पर पवनों को तीन प्रकार में बांटा जा सकता है 

  1. प्रचलित पवन या भूमंडलीय पवन
  2.  मौसमी पवन या सामयिक पवन
  3.  स्थानीय पवन

 

प्रचलित पवन या भूमंडलीय पवन

 यह साल भर निश्चित दिशा में प्रवाहित होने वाली पवनें हैं इन्हें प्रचलित, स्थायी, सनातनी, ग्रहीय, भूमंडलीय पवनों के रूप में जाना जाता है व्यापारिक पवनें पछुआ पवन एवं ध्रुवीय पवनें इसी के अंतर्गत आती है।

व्यापारिक पवन 

यह उपोषण उच्च वायुदाब कटिबंधों से विषुवतीय निम्न वायुदाब की ओर दोनों गोलार्धों में निरंतर बहने वाली पवनें हैं ट्रेड शब्द जर्मन भाषा के एक शब्द से बना है जिसका अर्थ है निर्दिष्ट पथ अतः ट्रेड पवन एक निर्दिष्ट पथ पर चलने वाली पवनें हैं

उत्तरी गोलार्ध में यह उत्तर पूर्व व्यापारिक पवन के रूप में एवं दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण पूर्व व्यापारिक पवन के रूप में लगातार बहती हैं विषुवत रेखा के समीप यह दोनों पवनें टकराकर ऊपर उठती हैं और घनघोर संवहनीय वर्षा करती हैं महासागरों के पूर्वी भाग में ठंडी समुद्री धाराओं से संपर्क के कारण पश्चिमी भाग की व्यापारिक पवनों की अपेक्षा ये शुष्क होती हैं।

पछुआ पवनें 

उपोष्ण वायुदाब कटिबंध से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध की ओर चलने वालीपश्चिमी पवनों को पछुआ पवन कहते हैं उत्तरी गोलार्ध में यह दक्षिण पूर्व से उत्तर पूर्व की ओर एवं दक्षिणी गोलार्ध में उत्तर पूर्व से दक्षिण पूर्व की ओर बहती है पश्चिमी यूरोपीय तुल्य जलवायु के विकास का कारण ये ही हवाएं हैं जो वहां तापमान वृद्धि व वर्षा का कारण है। 

स्थलीय अवरोधों के अभाव के कारण पछुआ पवनों का सर्वश्रेष्ठ विकास दक्षिणी गोलार्ध में 40अंश- 65अंश अक्षांशों के मध्य होता है। इन अक्षांशों पर इन्हें गरजता चालीसा, प्रचंड या भयंकर पचासा तथा चीखता साठा कहा जाता है ये नाव नाविकों के लिए भयानक है और उन्हीं के द्वारा दिए गए हैं।

ध्रुवीय पवन

 ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर बहने वाली पवनें ध्रुवीय पवनें कही जाती हैं उत्तरी गोलार्ध में इनकी दिशा उत्तर पूर्व से दक्षिण पूर्व की ओर एवं दक्षिणी गोलार्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर पूर्व की ओर है तापमान कम होने से इनकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता अत्यंत कम होती है यह अत्यंत ठंडी वह बर्फीली होती है एवं प्रभावित क्षेत्र में तापमान को हिमांक से भी नीचे कर देती है उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंध में जब पछुआ पवन इन ध्रुवीय पवनों से टकराती है तो वाताग्रों का निर्माण होता है जिसके सहारे पर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति होती हैं।

मौसमी या सामयिक पवन

जिन पवनों की दिशा मौसम या समय के अनुसार परिवर्तित हो जाती हैं उन्हें सामयिक पवन कहते हैं पवनों के इस वर्ग में मानसूनी पवने, स्थल समीर व समुद्र समीर तथा पर्वत समीर व घाटी समीर को शामिल किया जाता है।

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मानसूनी पवनें

धरातल कि वे सभी पवनें जिनकी दिशा में मौसम के अनुसार पूर्ण परिवर्तन आ जाता है मानसूनी पवनें कहलाती हैं इसके संबंध में विस्तृत विवेचन सबसे पहले अरब भूगोलवेत्ता अल मसूदी ने किया था ये पवनें ग्रीष्म ऋतु के छः माह समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं तथा शीत ऋतु में छः माह स्थल से समुद्र की ओर इन का प्रवाह होता है।

 ऐसा स्थल व जल के गर्म होने की अलग-अलग  प्रवृत्ति के कारण होता है इनकी उत्पत्ति कर्क व मकर रेखाओं के बीच की व्यापारिक पवनों की पेटी में होती है।दक्षिणी एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया में इनकी उत्पत्ति की सबसे आदर्श दशाएं मिलती हैं।

स्थल समीर व समुद्र समीर 

दिन के समय निकटवर्ती समुद्र की अपेक्षा स्थल भाग गर्म हो जाने के कारण वहां निम्न वायुदाब की स्थिति उत्पन्न हो जाती है जबकि समुद्री भाग की अपेक्षा ठंडा होने के कारण वहां उच्च वायुदाब मिलता है स्थल की गर्म वायु जब ऊपर उठती है तो समुद्र की आर्द्र तथा ठंडी वायु उस रिक्त स्थान को भरने के लिए स्थल की ओर चलती है जिसे समुद्र समीर कहते हैं।

 रात्रि के समय स्थिति इसके विपरीत होती है इस समय स्थलीय भाग के तेजी से ठंडा होने के कारण समुद्र पर स्थल की अपेक्षा अधिक तापमान तथा निम्न वायुदाब मिलता है फलस्वरूप वायु स्थल से समुद्र की ओर चलती है जिसे स्थल समीर कहते हैं।

 

पर्वत समीर व घाटी समीर

 पर्वतीय भागों में दिन के समय पर्वतीय ढलान की वायु अधिक गर्म हो जाती है घाटी के अपेक्षाकृत कम गर्म वायु इसके सहारे ऊपर उठती है इसे घाटी समीर कहा जाता है यह हवाएं ऊपर जाकर ठंडी हो जाती है और कभी-कभी दोपहर को वर्षा करती है रात्रि के समय पर्वतीय ढाल की वायु विकरण ऊष्मा में ह्रास के कारण शीघ्र ठंडी होकर भारी हो जाती है तथा पर्वत की ढलान के सहारे नीचे की ओर उतरना शुरू कर देती है इसे पर्वत समीर कहते हैं।

स्थानीय पवन

 यह पवन ए तापमान तथा वायुदाब के स्थानीय अंतर से चला करती हैं और बहुत छोटे क्षेत्र को प्रभावित करती हैं जहां गर्म स्थानीय पवन किसी प्रदेश विशेष के तापमान में वृद्धि लाती हैं वहीं ठंडी स्थानीय पवन कभी-कभी तापमान को ही मांग से भी नीचे कर देती है यह स्थानीय पवने शुभ मंडल की निचली परतो तक ही सीमित रहती हैं कुछ प्रमुख स्थानीय पवन ने इस प्रकार हैं

चिनूक

फोन

सिराॅको 

ब्लैक रोलर

योमा 

टेंपोरल

सीमूम 

सामुन

सीस्टन 

हबूब 

काराबुरान

हरमटट्न 

बोरा 

हिम झंझावात

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