difference between static and dynamic analysis

स्थैतिक तथा प्रावैगिक विश्लेषण में अंतर

difference between static and dynamic analysis

समयतत्व-

 इन दोनों के बीच सबसे प्रमुख तथा मूलभूत अंतर यह है कि प्रवैगिक अर्थशास्त्र में समय तत्व को प्रधान स्थान प्राप्त है वस्तु स्थिति तो यह है कि समय तत्व के अभाव में विश्लेषण स्थैतिक हो जाता है इस प्रकार एक स्थैतिक विश्लेषण में समय तत्व की अवहेलना की जाती है हम पहले भी पढ़ चुके हैं कि जब विश्लेषण के संबंध में प्रयोग में आने वाली सभी चर एक ही समय अवधि से संबंधित हो तो विश्लेषण स्थैतिक होता है।

जैसे Dt = f (Pt) अर्थात t अवधि की मांग (D) अवधि के ही मूल्य (Pt) का फलन है या Ct = f (Yt) जिसमें t अवधि का उपभोग (C) t अवधि की ही आय (Y) का फलन है। पहले उदाहरण उदाहरण में D तथा P दूसरे में C तथा Y सभी एक ही समयावधि t से संबंधित है पर यदि विश्लेषण में प्रयोग में आने वाले सभी चर विभिन्न समयावधियों से संबंधित हो तो विश्लेषण प्रवैगिक होगा।            तटस्थता / उदासीनता वक्रों की विशेषताएँ

समयावधि-

difference between static and dynamic analysis-स्थैतिक अर्थशास्त्र का संबंध किसी एक समय बिंदु से होता है जबकि प्रवैगिक विश्लेषण का संबंध समयावधि से होता है एक समय बिंदु पर विश्लेषण होने के कारण स्थैतिक अर्थशास्त्र में आर्थिक निकाय या चरों में होने वाले परिवर्तनों को सरलता पूर्वक बिना किसी हिचकिचाहट के छोड़ दिया जाता है या छोड़ा जा सकता है पर प्रवैगिक विश्लेषण तो इन्हीं का अध्ययन है।

परिवर्तन-

difference between static and dynamic analysis- स्थैतिक विश्लेषण विश्राम प्राप्त हो जाने वाली शक्तियों का अध्ययन है, जबकि प्रवैगिक आर्थिक सिद्धांत परिवर्तनीय शक्तियों का अध्ययन है।

अवस्था-

 स्थैतिक अर्थशास्त्र में हम केवल संस्थिति की अंतिम अवस्था का विश्लेषण करते हैं, जबकि प्रायोगिक अर्थशास्त्र के अंदर हम यह देखते हैं कि किस प्रकार विभिन्न समयावधियों में विभिन्न चरणों में परिवर्तन के बाद इस स्थिति की प्राप्ति हुई है।

विश्लेषण का संबंध-

बामोल के अनुसार स्थैतिक विश्लेषण का संबंध केवल वर्तमान से है प्रवैगिक विश्लेषण का संबंध भूत एवं भविष्य काल से है। 

प्रमुख क्षेत्र-

स्थैतिक विश्लेषण का प्रमुख क्षेत्र सीमांत विश्लेषण है, जबकि प्रवैगिक विश्लेषण का प्रमुख क्षेत्र विकास मॉडल है 

अध्ययन में-

स्थैतिक आर्थिक विश्लेषण सरल विश्लेषण है क्योंकि इसके अध्ययन में गणित की सहायता नहीं ली जाती रहेगी प्रवैगिक विश्लेषण एक जटिल विश्लेषण है क्योंकि इसमें गणित का प्रयोग किया जाता है।

प्रवैगिक विश्लेषण का महत्व 

आजकल आर्थिक सिद्धांतों के विश्लेषण में प्रवैगिक विश्लेषण का प्रयोग अधिक बढ़ता जा रहा है और यदि हम अपने सिद्धांत का प्रतिपादन अवास्तविक मान्यताओं पर न करना चाहे तो इसका प्रयोग आवश्यक है।

व्यावहारिक जीवन में स्थैतिक विश्लेषण की दशाएं नहीं मिलती है इस गतिशील संसार में प्रवैगिक विश्लेषण वास्तविकता के अधिक निकट है क्योंकि एक तो यह अवास्तविक मान्यताओं पर आधारित नहीं है दूसरे यह अर्थव्यवस्था में होने वाले परिवर्तनों का ही अध्ययन करता है। किसी महत्वपूर्ण तथ्य को स्थिर मानकर नियम का प्रतिपादन नहीं करता।

 प्रवैगिक विश्लेषण के महत्व के संबंध में प्रो. रॉबिन्स इसके द्वारा किए जाने वाले चार कार्यों को स्वीकार करते हैं- 

  • यह अनेक आर्थिक सिद्धांतों की क्रियाशीलता तथा सत्यता की जांच करता है। 
  • यह स्थैतिक अर्थशास्त्र की अवास्तविक मान्यताओं को स्वीकार करके अधिक वास्तविक मान्यताएं हमारे सामने रखता है जिससे कि सिद्धांत वास्तविक के अधिक करीब आ सके। 
  • यह उन क्षेत्रों का उल्लेख करता है जिनमें परिष्कृत रूप में स्थैतिक विश्लेषण का प्रयोग किया जा सके। 
  • प्रवैगिक अर्थशास्त्र नए तत्वों पर प्रकाश डालता है और इसके माध्यम से अधिक सही भविष्यवाणी की जा सकती है। 

सब दिशाओं में महत्त्व के अतिरिक्त प्रवैगिक अर्थशास्त्र का महत्व आर्थिक विकास की समस्या के अध्ययन के साथ बहुत अधिक बढ़ गया है क्योंकि आर्थिक समृद्धि या विकास की समस्या अर्थव्यवस्था के प्रवैगिक पहलू से संबंधित है स्थैतिक से नहीं। 

र्थशास्त्र की सीमाएं- 

यद्यपि प्रवैगिक आर्थिक विश्लेषण अधिक विस्तृत तथा वास्तविकता के अधिक करीब है फिर भी इसके प्रयोग की अनेक सीमाएं हैं, जो इस प्रकार हैं- 

आर्थिक विश्लेषण की यह एक अत्यंत ही जटिल रीति है यह इसलिए कठिन नहीं है की इसमें ‘यदि अन्य बातें सामान रहे’ की मान्यता को छोड़ दिया गया है बल्कि इसलिए कि इसके आधार पर समय तत्व को पूर्णतया ध्यान में रखना अत्यंत ही आवश्यक है और विश्लेषण में समय तत्व के लाने के कारण हमें आर्थिक प्रक्रिया में समयपश्चाता नियततालिका आदि कठिन तत्वों का समावेश करना पड़ता है।

इसके लिए हमें उच्चतर गणितीय विधियों, संख्यिकी तथा अर्थमिति का सहारा लेना पड़ता है, जिन्हें समझना तो कठिन है ही साथ ही विश्लेषण और कठिन हो जाता है जैसे-जैसे उच्चतर गणितीय विधियों का प्रयोग किया जाता है विश्लेषण उतना ही सामान्य समझ से दूर हटता जाता है। 

इस गतिशील संसार में जहां परिवर्तन बहुत ही तेजी से हो रहे हैं हो समस्या का अध्ययन तो प्रवैगिक आधार पर ही करना अधिक उचित तथा तर्कसंगत होगा पर प्रवैगिक दृष्टि से अध्ययन करना संभव ही नहीं है इसी के फलस्वरूप लोगों के दिमाग में प्रवैगिक विश्लेषण की सफलता के संबंध में संदेह है।

 निष्कर्ष 

आजकल इतने बढ़ते हुए महत्व के बावजूद भी मानना पड़ेगा कि प्रवैगिक विश्लेषण विधि स्थैतिक की अपेक्षा अधिक जटिल है यदि परिवर्तन की गति बहुत अधिक तीव्र हो तो किसी भी आर्थिक समस्या का अध्ययन प्रवैगिक आधार पर करना बहुत अधिक कठिन हो जाता है।

 

 इसलिए प्रोफ़ेसर मेहता ने कहा कि ऐसी समस्या का अध्ययन स्थैतिक आधार पर छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में करना चाहिए वास्तविकता तो यह है कि दोनों विधियों का प्रयोग आर्थिक विश्लेषण के लिए किया जाना चाहिए ऐसी समस्याएं जिनका अध्ययन स्थैतिक विधि से हो सकता है जैसे मूल्य निर्धारण की समस्या, उनके संबंध में प्रवैगिक विश्लेषण का सहारा लेकर अनावश्यक रूप से जटिलता नहीं पैदा की जानी चाहिए पर ऐसी समस्याएं जैसे आए निर्धारण व्यापार चक्र आर्थिक समृद्धि आती जहां प्रवैगिक का प्रयोग वांछनीय है वहां इसकी अवहेलना नहीं की जानी चाहिए।

 

 इस प्रकार आर्थिक समस्याओं के क्रमबद्ध तथा वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए दोनों ही पद्धतियों का साथ साथ प्रयोग आवश्यक है।

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *